जरा सोचिए क्या आप खुद ही बीमारी के पास जा रहे हैं? कहीं आपकी भी ये बुरी आदत, वायरस को तो नहीं दे रही दावत…

हम भारतीयों की कई सारी बुरी आदतें हैं, जो आगे चलकर बीमारियों की वजह बनती हैं। हम ऐसे हैं कि कई बार बीमारी हमारे पास नहीं आती है, बल्कि हम अपनी आदतों की वजह से बीमारियों के पास पहुंच जाते हैं। माना कि हालात खराब हैं, हमारे अपने अस्पतालों में भर्ती हैं।
डॉक्टर बताते हैं कि सिर्फ 2% लोगों को हॉस्पिटल में रखने, और ऑक्सीजन की जरुरत होती है। वहीं सिर्फ 5% को रेमडेसिविर की जरुरत होती है, लेकिन लक्षण दिखते ही लोग पैनिक हो जाते हैं। कई तो बिना लक्षण वाले भी अस्पताल पहुंच जाते हैं और खुद को भर्ती करने की जिद करने लगते हैं। डॉक्टर का क्या है वो कुछ भी बोले, उनकी सलाह थोड़े ही जरूरी है। क्या पता बाद में बेड मिले ना मिले, ऑक्सीजन मिले ना मिले, अभी से बेड बुक कर लेते हैं। और इनको आसानी से बेड मिल भी जाते हैं, क्योंकि इनके चाचा विधायक जो ठहरे।
अब देख लीजिए शर्मा जी को ही… ट्रेन पहुंची नहीं कि लंबी लाइन में जाकर खड़े हो गए। पता है कि एक-दूसरे को छूने से बीमार पड़ सकते हैं, लेकिन अगर धक्का-मुक्की नहीं की और कहीं ट्रेन निकल गई, भले ही सामने से उतरने वाले लोग अटके पड़े हैं, लेकिन शर्मा जी जब तक सबको धकेलते हुए अंदर नहीं घुसेंगे तो ट्रेन चलाएगा कौन? अ-हां हो सकता है कि जल्दी से ट्रेन इसलिए पकड़नी है, क्योंकि इन्हें यही लगता है कि सामने से कोई सिमरन आएगी और ये राज बनकर उसका हाथ थाम लेंगे।
और वो हमारे चंद्राकर भैया, पड़ोस वाले। अरे उनका क्या है सड़क पर थोड़ी भी जगह दिख जाए तो कही भी घुस जायेंगे। गाड़ी थोड़े ना च लाते हैं, सड़क पर हवाई जहाज उड़ाते हैं। पहले खुद टेढ़े-मेढ़े रास्ते लेकर ट्रैफिक जाम करवाएंगे फिर वहां खड़े-खड़े हॉर्न बजाएंगे। सामने वाले को गालियां देने लगेंगे। जल्दी तो इतनी होती है कि जैसे घर पे बम डीफ्यूज करने जाना हो और एक सेकंड की भी देरी हुई तो ब्लास्ट ही हो जाएगा।
अरे हां भाई, कल तो लॉकडाउन लगने वाला है। आज ही का टाइम है, चलो सारा सामान लेकर आ जाते हैं। हालांकि सरकार ने तो एक हफ्ते पहले से ही अनाउंसमेंट कर दिया था। लेकिन…लेकिन वेकिन क्या आखिरी दिन ही तो सब खरीदते हैं, आज तो शायद सब कुछ सस्ते में मिल जाएगा। लंबी भीड़ दुकानों में, लोग बाजारों में झूमा झपटी कर रहे हैं, लेकिन अपने को क्या है सामान तो आज लेना ही है, कल दुनिया खत्म जो हो जाएगी। मर जाएंगे, मिट जाएंगे, लेकिन राशन और सब्जी तो आज ही लेकर जाएंगे। और क्यों नहीं हम पांडव पुत्र जो हैं, कौरवों की सेना को हराकर देकर रणभूमि भी तो विजय करनी है। फिर भाड़ में जाए मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और ये कोरोना।
हमारे देश में कुछ अलग सी प्रजाति के भी लोग हैं, जिनको साधारण भाषा में मतलबी कहते हैं। अरिजीत सिंह के गाने का असर इन पर कुछ इस तरह से हुआ होता है कि खुद एक स्वस्थ्य है, लेकिन फिर भी महंगी-महंगी इंजेक्शन खरीद कर रख लेते हैं। हां भई अगर फ्यूचर में बीमार पड़ गए थे, यही रेमडेसिविर इंजेक्शन तो भगवान है, भगवान। जबकि इनको ये भी नहीं पता है कि इस इंजेक्शन का यूज इनको करना चाहिए या नहीं। वर्तमान का क्या है, जो मर रहे हैं इंजेक्शन के आभाव में मरने दो। मेरा क्या लगता है। और अगर लगता भी है तो क्या? रिश्ते तो सब मोह माया हैं।
और अपनी वाट्सएप यूनिवर्सिटी, उसमें तो आप सब होंगे ना। सारे MBBS वाले तो यहीं पढ़ते हैं। कोरोना से बचने के कैसे-कैसे गजब तरीके ये ढूंढ़कर लाते हैं, जो मेडिकल साइंस में भी मुमकिन नहीं। ऐसे- ऐसे वीडियो शेयर करते हैं, जो लोगों को पैनिक होने पर मजबूर कर दे। लोगों को डराती हुई तस्वीरें भेजते हैं। बाबा से लेकर मुंशी काबा तक का नुस्खा इन ग्रुपों में मिल जाएगा। कोरोना का असर हो ना हो, इनके मैसेज देखकर आदमी का फोन पर ही हाल बेहाल हो जाता है। जबकि सबको पता है कि ये समय डरने, डराने का नहीं, कोरोना से लड़ने का है। तो सकारात्मक मैसेज भेजिए ना, सही खबर दीजिए। लेकिन ये कैसे हो सकता है इन खबरों को कौन लाइक शेयर और सब्सक्राइब करेगा।
शराब की दुकानें उन्हें भला कैसे भूल सकते हैं, वहां ही तो असली मजमा जमता है सरकार कहती है वहां से बड़ा राजस्व आता है, ठेके खुलते ही सब पहुंच जाते हैं, पारों की याद भुलाने देवदास बनकर… तो कोई मजनू की लैला बनकर. शराब लेने तो ये लोग मास्क लगाकर पहुंचते हैं, लेकिन पीने के बाद तो इन्हें देखकर यही लगता है कि वायरस इन पर नहीं, ये वायरस पर अटैक करने वाले हैं।
ऐसी कई सारी आदतें हैं। जैसे राशन लेकर आने के बाद हाथ अच्छे से धोना, दूधवाला हो या सब्जी वाला मास्क लेकर सामान लेना और फिर हैंथवॉश करना। भूल जाते हैं ना शायद, क्योंकि ये सब तो घर में ही आ रहा है फिर घर में कैसे खतरा। लेकिन ये लोग से बाहर से आ रहे हैं, ये याद नहीं रहता।
कचरा वाला, गाड़ीवाला आया कि धुन तो आपको याद हो गई होगी, लेकिन क्या कचरा डालते समय मास्क लगाना याद रहता है? कुछ भी बाहर से खरीदते हैं तो क्या उसे धोकर खाते या बनाते हैं । हमारे दिनचर्या की ऐसी छोटी-छोटी गलतियां ही वायरस को हम तक पहुंचाती हैं। लेकिन हम तो यही सोचकर बैठे हैं, जब किसी को छूएंगे नहीं… हम पॉजिटिव नहीं हो सकते।
आदत है हमारी दूसरों को सलाह देते हैं, छू देने पर डांटते हैं, फटकारते हैं। लेकिन खुद ही हर दिन छोटी-छोटी गलतियां कर जाते हैं। और ये छोटी से गलती फिर हम पर ही भारी पड़ जाती है। तो भईया कहने का मतलब सिर्फ ये है कि आप अगर समाज का ठेका नहीं ले सकते तो कम से कम अपना ही ले लें। और हां सरकार को भूल ही जाइए, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरूआत तो इसी समय के लिए ही की गई थी।
आकड़े बताते हैं कि कोरोना से रोज देश में सिर्फ एक परसेंट लोगों की मौत होती है। इनमें से भी कुछ घबराहट और नकारात्मक रवैए की वजह से जान से हाथ धो बैठते हैं। जबकि 99.4% लोग ठीक हो रहे हैं, उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। वैक्सीनशन चालू है, जाइए वैक्सीन लगवाइए, लेकिन वहां भी भीड़ मत बढ़ाइए, ये मत भूलिए कि जिस बीमारी से बचने के लिए आप वहां जा रहे हैं, वहीं आपकी गलती भारी पड़ जाए और वायरस आप पर अटैक कर दे। तो बिडू सोच और बिहेवियर पॉजिटिव रखिए, रिपोर्ट खुद ही नेगेटिव आएगी। प्रज्ञा छतीसगढ़ परिवार आपसे यही अपील करता है कि सकारात्मक रहिए, स्वस्थ रहिए, घर पर रहिए और कोरोना गाइडलाइन का पालन कीजिए।