चार साल पुराने डाटा और एनजीटी की अवमानना के साथ हुई एसइसीएल की जन सुनवाई,नियम कायदों की धज्जियां उड़ाते हुये एक और जनसुनवाई सम्पन्न…

खरसिया। वैसे तो जिले में नियम कायदों की धज्जियां उड़ाते हुये जन सुनवाईयो का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन सरकारी कंपनी एसइसीएल की छाल कोयला खदान विस्तार के लिये जन सुनवाई में तो पर्यावरणीय मामलों की सर्वोच्च अदालत एनजीटी के आदेश की भी घोर अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। दिनांक 12 मार्च को साउथईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड रायगढ़ एरिया के छाल ओपन कास्ट प्रोजेक्ट के विस्तार के लिए पर्यावरणीय लोक सुनवाई का आयोजन किया गया इस दौरान वहां मौजूद सैकड़ों लोगों ने अपनी बात रखी इनमें से किसी ने कोयला खदान के विस्तार का समर्थन किया तो किसी ने तर्कसंगत ढंग से विरोध भी किया रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़ तहसील के ग्राम नवापारा में यह सुनवाई हुई जिसमें छाल कोयला खदान की क्षमता 2.50 एमटीपीए से बढ़ाकर 7.50 एमटीपीए करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया खदान विस्तार के लिए 1342.86 हेक्टेयर जमीन ली जा रही है इसकी लोक सुनवाई में लोगों ने कहा कि नियम विरूद्व जनसुनवाई की जा रही है, और लोागें ने इस जनसुनवाई का पुरजोर तरीके से विरोध भी किया।
ईआईए रिपोर्ट पर उठाया सवाल
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का २०१७ का स्पष्ट आदेश है कि जन सुनवाई के समय या मंत्रालय में पर्यावरण स्वीकृति का आवेदन देते समय डाटा तीन साल से ज्यादा पुराने नहीं होने चाहिये अन्यथा आवेदन ही निरस्त कर पुनः शुरू से प्रक्रिया शुरू करनी होगी। नियमों की मानें तो पर्यावरणीय लोक सुनवाई में प्रस्तावित परियोजना के इलाके में पड़ने वाले प्रभाव पर ईआईए रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है परियोजना का विरोध करने वाले वालों ने अपनी बात रखते हुए कहा कि एसईसीएल के वर्ष 2017 के डाटा के आधार पर ईआईए रिपोर्ट तैयार किया गया है जबकि पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक डाटा 3 साल से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। जनचेतना के रमेश अग्रवाल ने कहा कि शिवपाल भगत बनाम भारत सरकार मामले में 20 नवंबर 2020 को अपने आदेश द्वारा रायगढ़ जिले के तमनार व घरघोड़ा तहसील में नये उद्योग कोयला खदान या विस्तार या भूमिगत से ओपन कास्ट माइनिंग पर रोक लगा दी है। दो साल के बृहद पर्यावरणीय अध्ययन जरुरी कर दिया गया। यही कारण है कि अडानी की गारे पेलमा सेक्टर २ कोयला खदान को जन सुनवाई के डेढ़ साल बाद तक भी स्वीकृति नहीं मिल पाई है। हिंडाल्को को अपनी भूमिगत खदान को खुली खदान करने का प्लान छोड़ कर खदान ही सरेंडर करना पड़ा। यही नहीं इआईए में दिये गये पर्यावरणीय आंकड़े चार साल पुराने होने के बावजूद सुनवाई करवाने में कोई हर्ज नहीं समझा गया।

पर्यावरणीय प्रभाव पर अध्ययन कराने की मांग
कोयला खदान के विस्तार की कि ईआईए रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद इसका विरोध कर रहे संगठनों ने मांग की है कि इस परियोजना का केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की स्वतंत्र टीम के माध्यम से इस क्षेत्र की जमीनी स्तर पर अध्ययन के बाद रिपोर्ट तैयार की जाए इसके बाद जनसुनवाई फिर से करवाई जाए।
प्रभावितों को अब तक नहीं मिला नौकरी व मुआवजा
कोयला खदान विस्तार का विरोध कर रहे राजेश त्रिपाठी ने बताया की छाल कोयला खदान परियोजना सन 2006 में शुरू हुई तब से लेकर आज तक भी इस खदान के अनेक प्रभावितों को नौकरी और मुआवजा नहीं मिल सका है ऐसे में पुराने प्रकरणों को निपटाये बिना खदान के विस्तार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए इसके अलावा पेशा कानून के तहत आदिवासी बहुल इलाकों में ग्राम सभा का कोई भी आयोजन नहीं किया गया है जो कि पेशा कानून का उल्लंघन है।
नियमों का खुलकर हुआ उल्लंघन
इस जनसुनवाई में पर्यावरण मंत्रालय और एनजीटी के नियमों का खुलकर उल्लंघन हुआ और प्रशासन जन सुनवाई पूर्ण करवाने में लगा रहा। नोटिफिकेशन में प्रावधान है कि जन सुनवाई के समय कोई भी प्रतिभागी उद्योग प्रतिनिधी से उद्योग से सम्बंधित सवाल पूछ सकता है। जन चेतना संगठन के सदस्य रमेश अग्रवाल ने जब पीठासीन अधिकारी से उद्योग प्रतिनिधी को बुलाने निवेदन किया तो पीठासीन अधिकारी ने उसे सिरे से नकार दिया। रमेश अग्रवाल जिस तरीके से इआईए रिपोर्ट की गंभीर खामियों को उजागर कर रहे थे उन हालात में उद्योग प्रतिनिधी के लिये जवाब देना आसान नहीं होता या वे इआईए की गलतियों को स्वीकार कर सकते थे। उन हालात में जन सुनवाई जारी रखना आसान नहीं होता। रमेश अग्रवाल ने कहा कि एसइसीएल के लिये इआईए रिपोर्ट सीएमपीडीआई ने बनाई है जबकि इनका रिपोर्ट बनाने का लाइसेंस ही या तो लंबित है या निरस्त हो चूका है। पर्यावरण रिपोर्ट बनाने के लिये कोरबा जिले के कटघोरा आई.एम.डी. स्टेशन के डाटा लिया जाना बताना गया है जबकि आई. एम. डी. स्टेशन परियोजना स्थल के निकतम होना चाहिये। वैसे भी कटघोरा तहसील में आई.एम.डी. स्टेशन होने पर ही संदेह है, यही नहीं छाल कोयला खदान के १० कि.मी. रेंज में सारसमाल गांव में अध्ययन किया जाना बताया गया है जबकि सारसमाल नाम का गांव छ़ाल क्षेत्र में है ही नहीं। पहले कहा गया है कि कोयला खुदाई के लिये ब्लास्टिंग नहीं की जायेगी और इसके फायदे भी गिनाये गये हैं लेकिन बाद में न केवल ब्लास्टिंग का क्षेत्र बताया गया है बल्कि कितनी भारी मात्रा में बारूद लगेगा, इसकी भी गणना की गई है। भूजल दोहन के लिये एसइसीएल के पास केंद्र सरकार के विभाग सी.जी.डब्लू.ए. से लाइसेंस भी प्राप्त नहीं है जबकि एनजीटी की सख्ती के बाद इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाने लगा है। वैसे तो निजी कंपनियां जन सुनवाई में समर्थन जुटाने काफी मेहनत और पैसा खर्च करती हैं लेकिन एसइसीएल जैसी मिनी रत्न सरकारी कंपनी ने सबको पीछे छोड़ते हुये न केवल ग्रामीणों का समर्थन जुटाया बल्कि अपने यंहा कार्यरत कर्मचारियों को भी लाइन में लगाकर अपने खूब गुणगान करवाये। यह बात लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। बहरहाल जन सुनवाई तो पूरी हो गई, प्रशासन और पर्यावरण विभाग ने एक और औेपचारिकता पूरी कर ली लेकिन आगे स्वीकृति मिलना इतना आसान नहीं होगा ये बात जनचेतना के रमेश अग्रवाल दावे के साथ कह रहे हैं।