रायगढ़। इस लॉक डाउन ने कईओं के चेहरों से नकाब हटा दिया है। संकट के समय में जब लोगों को पुकारा जाता है तो कई लोग सहर्ष अपनी सुख-सुविधाओं को भूल कर खुद को तपाते हुए भी दूसरों का ख्याल रखते हैं लेकिन, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी सुख-सुविधाओं के अलावा दूसरों की कोई नहीं दिखाई देती है। जिम्मेदार प्रशासनिक अफसर भी यदि सहायता पहुंचाने में दिन और रात का भेद करने लग जाए तो इस संकट के समय में आप का सहारा कौन बनेगा आप किस से उम्मीद करेंगे।
सारंगढ़ में एक प्रशासनिक अधिकारी हैं जिन्होंने बताया कि एक जवान इंसान के दो हाथ पैर होते हैं …। वह इतनी जल्दी नहीं तड़प सकता । लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हुए वह इतना असहाय नहीं हो सकता…आखिर वह जवान है…। ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके दो हाथ पैर हैं रात 10 बजे सहायता मांगने का क्या औचित्य है…।
इस प्रशासनिक अधिकारी ने यह भी ज्ञान दिया कि पत्रकार लोग केवल गुमराह करने का काम करते हैं उनके कहने पर हम गुमराह होते रहें और पत्रकार मजा लेते रहें।
इस अधिकारी की ओर से एक ज्ञान और दे दिया गया कि वह 17 साल केंद्र सरकार के अधीन काम किए उन्हें पता है कि रायगढ़ जिले में लोगों की क्या मानसिकता है…। इतना ही नहीं बल्कि पत्रकारों को इस अधिकारी की ओर से एक ज्ञान की बात और बताइ गई। यह कहा गया कि यदि इतना ही सौख है तो खुद मदद करना चाहिए जाइए चाय पानी पिलाइये…। इतनी सब ज्ञान की बातें एक प्रशासनिक अधिकारी की ओर से पत्रकार को महज इसलिए दी गई क्योंकि उसने रात 10:00 बजे 100 किलोमीटर की पदयात्रा कर आए एक युवक के लिए गलती से मदद पहुंचाने की बात उस प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ फोन पर कह दी। यह बात इस प्रशासनिक अधिकारी को इतनी नागवार गुजरी कि उसने अपने केंद्र सरकार के अधीन काम करने का पिछले 17 साल के अनुभव का ज्ञान फोन पर पत्रकार को दे डाला।
क्या है पूरा मामला
यह पूरा मामला सारंगढ़ क्षेत्र का है जहां 2 दिन पूर्व एक युवक सरायपाली से शक्ति याने जांजगीर चांपा जाने के लिए पैदल ही निकल पड़ा लेकिन, सारंगढ़ आकर उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया… शाम को 5:00 बजे से वह युवक 10:00 बजे तक मदद की आस में ग्राम हरदी के समीप भेड़वन मोड़ पर बैठा था। लेकिन शायद उसकी व्यथा किसी ने नहीं सुनी… रात लगभग 10:00 बजे जब इस बात की जानकारी डमरूआ डॉट कॉम के सारंगढ़ प्रतिनिधि संजय चौहान को हुई तो उन्होंने न केवल पत्रकारिता बल्कि मानवता के नाते सारंगढ़ के एक प्रशासनिक अधिकारी को फोन पर इस बात की सूचना देते हुए पस्त हो चुके उस युवक के लिए मदद मांगी। लेकिन यह जनाब न केवल उस दिन आपे से बाहर हुए बल्कि दूसरे दिन भी पत्रकार को फोन कर अपनी विद्वता और प्रशासनिक अधिकारी के रुतबे के साथ रात और दिन का फर्क बताने लगे। रात में उस प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि अभी आप मदद कीजिए हम सुबह मदद करेंगे। और दिन में फोन करके यह कहा कि पत्रकार गुमराह करते हैं। हम गुमराह होते रहे और पत्रकार मजा लेते रहे। वह युवक जवान था और उसके दो हाथ पैर थे वह जब 5:00 बजे से 10:00 बजे तक बैठा हुआ था तो उसके लिए क्या इमरजेंसी हो सकती है।
प्रशासनिक अधिकारी शायद भूल गए अपनी ड्यूटी और संक्रमण के दौरान कर्तव्य
देश का बच्चा-बच्चा यह समझ चुका है कि यदि कोई व्यक्ति कहीं बाहर से आता है तो बेहद एहतियात बरतने की जरूरत है। एक तो वह ना आने पाए इसके लिए उपाय करना है और यदि किसी प्रकार से आ जाए तो उसके लिए सबसे पहले मेडिकल टीम की ओर से उसका परीक्षण भी किया जाना है आप किसी को सीधे मदद कैसे पहुंचा सकते हैं। यह काम कौन करेगा पुलिस अथवा प्रशासन। क्योंकि समाजसेवियों के सीधे सहायता करने पर भी पाबंदी लगी हुई है। यदि किसी व्यक्ति को सहायता पहुंचाना है तो आपके पास क्या विकल्प बचता है… पुलिस अथवा प्रशासन…। लेकिन जब जिम्मेदार अधिकारी ही इस प्रकार का गैर जिम्मेदाराना बात करने लगे तो फिर इस सिस्टम का क्या होगा इसे बेहतर समझा जा सकता है।
जब डायल 112 ने भी दिखाया अपना ऐसा रूप
यदि आप किसी के लिए सहायता करना चाहते हैं तो यह आपके लिए खतरे की घंटी भी साबित हो सकती है …यह बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सारंगढ़ में मौजूद डायल 112 की टीम कह रही है। इस मसले पर जब रात में डायल 112 को कांटेक्ट किया गया तो उनका पहला वाक्य ही था कि आप जिस लड़के की बात कर रहे हैं यदि वह हमारे जाते तक वहां से चला गया या नहीं मिल पाया तो आप पर कार्रवाई हो जाएगी। आप किसी व्यक्ति या संस्था को देवदूत समझकर उससे मदद मांगते हैं और उसकी ओर से यदि इस प्रकार का जवाब मिलता है तो आप अपना संयम किस हद तक कायम रख सकते हैं। यद्यपि डायल 112 की टीम पत्रकार की ओर से गारंटी लेते हुए यह कहने पर कि वह मुझ पर कार्रवाई कर दें लेकिन उस युवक की सहायता करें तब 112 की टीम ने पहले पत्रकार को उठा कर अपनी गाड़ी में बैठाया फिर उसके साथ मौके पर गए। यह तो गनीमत थी कि मदद के लिए गुहार लगा रहा युवक अपना सब्र ना खोते हुए उसी स्थल पर बैठा रहा । यदि वह वहां से जरा सा भी इधर-उधर होता और वहां दिखाई नहीं देता तो डायल 112 की टीम पत्रकार पर मामला दर्ज कराने और उसके साथ कुछ भी कर सकने में शायद कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। कुछ ऐसे ही कारण है कि कुछ लोगों की वजह से और उल्टी सीधी कार्रवाई होने और कार्रवाई की धमकी देने जैसी बातों से लोग मदद के लिए आगे नहीं आ पाते हैं या यूं कहें कि मदद करने पर भी डरते हैं। जिन लोगों का ऐसा एटीट्यूड रहता है वही लोग जब भाषण के लिए मंच पर रहते हैं तो उनकी बोली से फूल झड़ते हैं लेकिन जब वास्तविकता सामने आती है तो चेहरे से नकाब हट जाते है।
देवदूत जब पत्रकारों से ऐसा व्यवहार करते हैं तो एक आम इंसान इनसे कैसे मदद ले सकता होगा
इस संकट की घड़ी में हम आप जिन्हें देवदूत समझते हैं यदि उनका व्यवहार इस प्रकार का एक पत्रकार के साथ हो सकता है तो आम इंसान के लिए क्या हो सकता होगा इस बात की परिकल्पना शायद आप ने कर ली होगी। ऐसे देव दूतों की ओर से वास्तविक देवदूतों की छवि भी धूमिल हो जाती है । बहरहाल पुलिस और प्रशासन के जो लोग वास्तविक तौर पर देवदूत बनकर काम करने हैं उन्हें हमारा सलाम है।
एसडीएम ने दिखाई संवेदनशीलता, तहसीलदार शतरंज ने दिलाई राहत
उक्त प्रशासनिक अधिकारी की ओर से निराश होकर जब एसडीएम चंद्रकांत वर्मा को उसी दौरान कॉल किया गया तो उन्होंने अपनी नींद और अपने आराम की प्रवाह न करते हुए काफी संजीदगी से इस मसले को समझा और तहसीलदार शतरंज को निर्देशित किया। तहसीलदार शतरंज ने उस युवक की मदद कराते हुए उसे जांजगीर चांपा भेजने की व्यवस्था कराई।