सूचना का अधिकार कानून के दुरुपयोग की कोई जानकारी नहीं है-केंद्र सरकार

भोपाल। देश में
ूचना अधिकार अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है । सुप्रीम कोर्ट के इस वक्तव्य से देश भर में कार्य कर रहे आरटीआई कार्यकर्ताओं को भारी मायूसी का सामना करना पड़ा और देश में भ्रष्टाचार के पर्याय बने अफ़सर , नौकरशाहों और कर्मचारियों की खुशी की ठिकाना नही रहा जो आरटीआई के चाबुक से आहत थे। उनको यह कहने का अवसर मिल गया कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने आरटीआई पर शंका व्यक्त की तो हम क्यो नही कर सकते । मुमकिन है सुप्रीम कोर्ट का यह वक्तव्य किसी विशेष मामले या घटना पर आधारित हो । हम यह भी नही कहते कि सुप्रीम कोर्ट ने गलत कहा होगा , परन्तु यह सच नही है । मुठ्ठी भर लोगों के कुकृत्यों के लिए संपूर्ण समाज को कठघरे में खड़ा नही किया जा सकता उसी तरह यह भी नही कहा जा सकता कि देश में इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है । वेसे सुप्रीम कोर्ट के इस वक्तव्य के बाद सरकार ने सारी शंकाओं को विराम दे दिया । केंद्र सरकार ने सूचना अधिकार अधिनियम की अस्मिता को बचा कर आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित कर दिया । केंद्र सरकार ने व्यक्त किया कि सूचना का अधिकार कानून के दुरुपयोग की कोई जानकारी नहीं है। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दुरुपयोग की कोई जानकारी भारत सरकार के संज्ञान में नहीं है। आगे उन्होने कहा कि कानून के दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई कानून में पहले से ही व्यवस्था दी गईं है ।प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दुरुपयोग की कोई विशिष्ट जानकारी भारत सरकार के संज्ञान में नहीं लाई गई है। सिंह ने कहा कि दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई कानून में पहले से ही व्यवस्था दी गई है. उन्होंने कहा, ‘आरटीआई के तहत जानकारी मांगने का अधिकार निरंकुश नहीं है।जितेंद्र सिंह का ये बयान ऐसे लोगों के लिए जवाब के रूप में देखा जा रहा है जो ये कहते हैं कि आरटीआई कानून का लोग दुरुपयोग करते हैं और परेशान करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।आरटीआई कानून के तहत जन सूचना अधिकारी इस बात को लेकर आपत्ति जताते हैं कि कुछ याचिकाकर्ता एक ही विषय पर कई बार आवेदन करते हैं और कई बार गलत सवाल पूछते हैं, जिसकी वजह से उनका काफी समय खराब होता है.हालांकि केंद्रीय सूचना आयोग के पूर्व सूचना आयुक्त का कहना है कि ऐसे मामले सिर्फ 1-2 प्रतिशत ही हैं. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा था, ‘अन्य कानून की तरह आरटीआई कानून भी दुरुपयोग से अछूता नहीं है. चूंकि ये सूचना का अधिकार कानून है, इसलिए ज्यादा कोशिश सूचना देने के लिए की जानी चाहिए।शैलेश गांधी ने कहा कि इस मामले को हल करने के लिए पूरे देश में आरटीआई आवेदन की प्रक्रिया को ऑनलाइन किया जाना चाहिए. यदि आवेदन ऑनलाइन किए जाते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति को पता चलेगा कि कौन बार-बार गलती कर रहा है और इस तरह से यह कदम समस्या निवारक के रूप में काम करेगा।बता दें कि सूचना का अधिकार कानून संभवत: आम जनता द्वारा सबसे ज्यादा बार प्रयोग किया जाने वाले कानूनों में से एक है। भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दों पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 से 2016 के बीच देश भर में कुल दो करोड़ 43 लाख से ज्यादा आरटीआई आवेदन दायर किए गए। इस बीच सबसे ज्यादा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 57 लाख 43 हजार आरटीआई आवेदन दायर किए गए।वहीं महाराष्ट्र में 54 लाख 95 हजार, कर्नाटक में 22 लाख 78 हजार, केरल में 21 लाख 92 हजार, तमिलनाडु में 19 लाख 23 हजार आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों द्वारा मुहैया कराई कई जानकारी के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार किया है।बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार आरटीआई संशोधन विधेयक लेकर आई है जिसमें केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन और उनके कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा तय करने का प्रावधान रखा गया है. आरटीआई कानून के मुताबिक एक सूचना आयुक्त का कार्यकाल पांच साल या 65 साल की उम्र, जो भी पहले पूरा हो, का होता है।अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता था. वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता था।आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 13 और 15 में केंद्रीय सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं निर्धारित करने की व्यवस्था दी गई है. केंद्र की मोदी सरकार इसी में संशोधन करने के लिए बिल लेकर आई है।आरटीआई की दिशा में काम करने वाले लोग और संगठन इस संशोधन का कड़ा विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर नागरिक समाज और पूर्व आयुक्तों ने कड़ी आपत्ति जताई है. बीते बुधवार को दिल्ली में केंद्र द्वारा प्रस्तावित आरटीआई संशोधन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ था जहां पर 12 राज्यों से लोग आए थे।देश के सूचना आयोगों की क्या है स्थिति देश भर के सूचना आयोग की हालात बेहद खराब है। आलम ये है कि अगर आज के दिन सूचना आयोग में अपील डाली जाती है तो कई सालों बाद सुनवाई का नंबर आता है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इन आयोगों में कई सारे पद खाली पड़े हैं।1. आंध्र प्रदेश के राज्य सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है. ये संस्थान इस समय पूरी तरह से निष्क्रिय है।2. महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोग में इस समय 40,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं लेकिन यहां पर अभी भी चार पद खाली पड़े हैं।3. केरल राज्य सूचना आयोग में सिर्फ एक सूचना आयुक्त है. यहां पर 14,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं।4. कर्नाटक राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के 6 पद खाली पड़े हैं जबकि यहां पर 33,000 अपील और शिकायतें लंबित हैं।5. ओडिशा सूचना आयोग सिर्फ तीन सूचना आयुक्तों के भरोसे चल रहा है जबकि यहां पर 10,000 से अपील/शिकायतें लंबित हैं. इसी तरह तेलंगाना के सूचना आयोग में सिर्फ 2 सूचना आयुक्त हैं और यहां पर 15,000 से ज्यादा अपील और शिकायतें लंबित हैं।6. पश्चिम बंगाल की स्थिति बहुत ज्यादा भयावह है. यहां स्थिति ये है कि अगर आज वहां पर कोई अपील फाइल की जाती है तो उसकी सुनवाई 10 साल बाद हो पाएगी. यहां पर सिर्फ 2 सूचना आयुक्त हैं।7. वहीं गुजरात, महाराष्ट्र और नगालैंड जैसी जगहों पर मुख्य सूचना आयुक्त ही नहीं हैं. यहां पर सूचना आयुक्त मुख्य सूचना आयुक्त के बिना काम कर रहे हैं।सूचना अधिकार का कैसे होता है उपयोग –सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना आयोग सूचना पाने संबंधी मामलों के लिए सबसे बड़ा और आखिरी संस्थान है।हालांकि सूचना आयोग के फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। सबसे पहले आवेदक सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी के पास आवेदन करता है।अगर 30 दिनों में वहां से जवाब नहीं मिलता है तो आवेदक प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपना आवेदन भेजता है।अगर यहां से भी 45 दिनों के भीतर जवाब नहीं मिलता है तो आवेदक केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना के आयोग की शरण लेता है।लेकिन मोदी सरकार पर आरोप है कि वो संशोधन के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर कर रही है और सूचना आयुक्तों पर दवाब डालना चाहती है ताकि वे ऐसे फैसले न दे सकें जो सरकार के खिलाफ हो।सूचना अधिकार के दुरुपयोग से बचने के लिए प्रावधान – दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई एक्ट में धारा-8 है जो कि कुछ सूचनाओं का खुलासा करने से छूट प्रदान करता है।इस धारा और उसकी उपधाराओ में स्पष्ट रुप से व्यक्त किया गया है कि किस प्रकार की जानकारी के प्रकटन पर रोक है । दुरुपयोग से बचने के लिए आरटीआई एक्ट में धारा-8 है जो कि कुछ सूचनाओं का खुलासा करने से छूट प्रदान करता है। इसके अलावा धारा-9 है जो कि कुछ मामलों में सूचना नहीं देने का आधार है । इस धारा में भी सूचनाओं के प्रकटन पर रोक का प्रावधान दिया गया है । अधिनियम की धारा-11में प्रावधान किया गया है कि चाही गईं जानकारी यदि तृतीय पक्ष से संबन्धित है तो उसको सूचना देकर सहमति । वही थर्ड पार्टी से संबंधित जानकारी नहीं दी जा सकती और धारा-24 के मुताबिक ये कानून कुछ संगठनों पर लागू नहीं होता है