उठ रहे दो सवाल- पहला क्या क़ानून से भरोसा हट गया, और दूसरा सवाल -हैदराबाद एनकाउंटर से ठीक दस बरस पहले भी हुआ था कुछ ऐसा.. क्या केवल संयोग है कि तब SP वही थे.. जो आज हैदराबाद कमिश्नर है

उठ रहे दो सवाल- पहला क्या क़ानून से भरोसा हट गया, और दूसरा सवाल -हैदराबाद एनकाउंटर से ठीक दस बरस पहले भी हुआ था कुछ ऐसा.. क्या केवल संयोग है कि तब SP वही थे.. जो आज हैदराबाद कमिश्नर है

रायपुर,6। हैदराबाद में एनकाउंटर की खबर के बाद भीड़ तंत्र इस एनकाउंटर का स्वागत कर रहा है,इस भीड़ में हर वर्ग का प्रतिनिधि चेहरा शामिल है। फिर वो साहित्यकार हों या रोज़ ऑफिस में काम करती कोई युवती हो..चौक पर ट्रेफ़िक सम्हालती महिला कर्मी हो या कॉलेज जाता युवा समुह। जैसा ज़बर्दस्त समर्थन और ज़िंदाबाद मिल रहा है वो गजब ही है।भीड़ नारा लगा रही है कि “पुलिस ज़िंदाबाद न्याय हो गया

।और यहीं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह बिलकुल फ़िल्मी डायलॉग है कि, आप पुलिस को कहें कि इंसाफ हो गया।CRPC और IPC से चलने वाली पुलिस का काम इंसाफ करना नहीं है, विवेचना करते हुए वास्तविक दोषी को अदालत पहुँचाना है। न्याय देने का काम अदालत का है। संविधान से चलने वाले इस देश में संस्थाएँ यदि अतिक्रमण कर जाएँगी तो आख़िरकार होगा कैसे। यह घटनाएं क्या वह ख़तरनाक तस्वीर नही तय कर रही हैं कि आप यह मानने को सार्वजनिक रुप से स्वीकार कर लें कि न्यायिक प्रणाली में न्याय पाना त्रुटियों से भरपुर है।यह बिलाशक ख़तरनाक तस्वीर है। एक बारगी मान लें कि न्यायिक प्रणाली में कुछ ख़ामियाँ हैं तो क्या करें कि, उस बहाने बाक़ी संस्थानों को कुछ भी तय करने की इजाज़त दे दें।या कि ख़ामियाँ दूर करें। न्यायिक प्रणाली पर उंगली उठाने के पहले उन कई हज़ार मामलों को याद रखना होगा जहां नक्सली आतंकवादी बता कर पकड़ा गया और बारहों साल बाद वे निर्दोष रिहा हुए।यदि आप यह व्यवस्था स्वीकारते हैं तो फिर सलवा जूडुम के दौरान हुई हर हत्या हर बलात्कार और बस्तियों की बस्ती राख कर देने को भी क्या सही मान लिया जाना चाहिए।

फ़िल्में अच्छी लगती हैं, ऐसे सीन बेहतर लगते हैं लेकिन वो फ़िल्में हैं। किसी सूरत महिला हो या पुरुष किसी नागरिक को नागरिक कर्तव्यों की अवहेलना की इजाज़त नहीं है। बलात्कार यौन हमले अस्वीकार हैं, लेकिन यह अंदाज कैसे स्वीकार हो।भावनाओं से चलने वाले इस देश में पाषाण प्रतिमा करोड़ लीटर दूध पी जाती है।कई पीर फ़क़ीर के नाम पर ज़मीनें क़ब्ज़ा ली जाती हैं।और उस पर कहना खुद की “हाराकीरि” कराना है, लेकिन कहना तो पड़ेगा न।क्या पुलिस की बताई एनकाउंटर की स्टोरी सच्ची है ? तो जरा ठहरिए कुछ जान लीजिए और बेहतर शायद समझ बन पाएगी। हैदराबाद के कमिश्नर का नाम है सी वी सज्जनगर। वर्ष 2008 में वारंगल में पुलिस ने इंजीनियरिंग कॉलेज की दो छात्राओं पर तेज़ाब फेंकने के आरोप में तीन लोगों को एनकाउंटर में मारा था,मरने वालो के नाम थे -एस श्रीनिवास राव,पी हरिकृष्ण और डी संजय। उस वक्त इस घटना की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि हज़ारों लोगों ने जिनमें ज़्यादातर छात्राएँ थीं वारंगल के तत्कालीन कप्तान के घर के बाहर जाकर उन्हें माला देने मिठाई खिलाने के लिए क़तार पर लगी थी, उस दौरान कई युवाओं ने उस कप्तान को कंधे पर उठा लिया था। इस एसपी को इस एनकाउंटर का प्रणेता माना गया था, और यह एसपी वही सी वी सज्जनगर थे, जो आज हैदराबाद के पुलिस कमिश्नर हैं।

वारंगल पुलिस के रिकॉर्ड में ऐसी दो घटनाएं और दर्ज हैं जिनमें चार दिसंबर 2007 को बच्ची के अपहरण और हत्या केआरोपियों का एनकाउंटर हुआ था और उसी बरस ठीक एक महिने पहले एक हिस्ट्रीशीटर और उसका सहयोगी एनकाउंटर में मारा गया।सुबह साढ़े तीन बजे आरोपियों को “सीन ऑफ़ क्राइम” ले ज़ाया गया जहां एक आरोपी ने कथित तौर पर बंदूक़ छिनी और शेष ने हमला कर भागने की क़वायद की, यदि वे भागते तो पुलिस के लिए बेहद अप्रिय स्थिति होती, रोकने के दौरान कथित रुप से हमला हुआ और आत्मरक्षा में गोली चली जिसमें चारों मारे गए।“पोलिस ज़िंदाबाद न्यायम दोरिकिंदी”और तमाम तारीफ़ों के शब्द जिससे सोशल मीडिया लहालोट है क्या इन तारीफ़ों को हम अपने न्यायिक व्यवस्था की समाप्ति या विश्वास का दरकना समझें .. और क्या यह समझना डरावना नहीं है।और आख़िर में जिस नृशंसता से महिला चिकित्सक को मारा गया, वह सहमाता है और शर्मिंदा भी करता है।यह ध्यान भी रखना होगा आरोपियों में कोई रईस नहीं था.. किसी का जबर पॉलिटिकल प्रोफ़ाइल नहीं था.. इनके ख़िलाफ़ साक्ष्य जुटा कर पेश करने और न्यायालय से सजा दिलाने में कोई दिक़्क़त भी नहीं थी। जाने मुझे क्यों गोपाल कांडा और उत्तर प्रदेश के कुलदीप सेंगर समेत कई नाम याद आ रहे हैं। जो नाम मैंने लिखे हैं ऐसी दिलेरी ऐसी बहादुरी जो हैदराबाद में कथित तौर पर दिखाई गई, क्या उन नामों पर अजमाई जा सकती थी ?पूरी दृढ़ता से बलात्कार करने वालों को कठोरतम दंड दिया जाना ही चाहिए.. दंड का काम न्यायालय का है.. पुलिस का काम अभियुक्त को तलाशना और उसके विरुद्ध वास्तविक साक्ष्य प्रस्तुत करना है.. क्योंकि नागरिक और देश की हर संस्था को केवल और केवल संविधान से ही चलना होगा।

Sunil Agrawal

Chief Editor - Pragya36garh.in, Mob. - 9425271222

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