ACB का यह मामला भी अब CBI के हवाले !

व्हाट्सएप चैट पर आधारित नान मामले की जांच CBI को सौंपने राज्य सरकार ने पत्र भेजा है। इस मामले में तत्कालीन AG सतीश वर्मा, अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला आरोपी हैं।
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नान घोटाला मामले में अभियुक्तों को गैर क़ानूनी तरीके से विवेचना में लाभ देने और ज़मानत में लाभ दिलाने के मामले की जाँच सीबीआई से कराने राज्य सरकार ने पत्र भेजा है। इस मामले में तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, अनिल टुटेजा तथा आलोक शुक्ला आरोपी हैं। एफआइआर में अन्य आरोपियों के भी संकेत हैं लेकिन उनके नाम उल्लेखित नहीं हैं।
क्राईम नंबर 49/24 का मसला
एसीबी/ईओडब्लू थाने में अपराध क्रमांक 49/24 के तहत बीते 4 नवंबर को एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर में यह बताया गया है कि, नान मामले के अभियुक्त अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को तत्कालीन अधिकारियों ने पद का दुरुपयोग करते हुए विधि विरुद्ध तरीके से लाभ दिया। इस संबंध में शिकायतकर्ता एजेंसी के द्वारा व्हाट्सएप चैट भी बतौर साक्ष्य एसीबी को दिए गए। इस मामले में तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला नामजद आरोपी बनाए गए। जबकि नामजद आरोपियों के बाद “अन्य” शब्द का प्रयोग है।
दिसंबर के पहले सप्ताह में भेजा गया पत्र
इस मामले में दिसंबर के पहले हफ़्ते में राज्य सरकार ने सीबीआई को पत्र लिखकर मामले की जांच करने का अनुरोध किया है। पंक्तियों के लिखे जाने तक सीबीआई की ओर से कोई जवाब राज्य सरकार को नहीं मिला है।
सतीश की अग्रिम जमानत याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित
इसी मामले में पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा की अग्रिम जमानत याचिका पर हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित है। रायपुर स्थित एसीबी की स्पेशल कोर्ट से अग्रिम जमानत आवेदन खारिज होने के बाद अग्रिम ज़मानत याचिका पर जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की कोर्ट में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने एसीबी और याचिकाकर्ता के तर्कों के श्रवण के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा है।
सीबीआई क्यों
ऐसा बताया जा रहा है कि, चूंकि इस एफआईआर में कुछ आरोपी विधि सेवा से सीधे जुड़े हुए हैं, इसके साथ साथ जैसा कि एफआईआर के शब्द हैं उससे संकेत मिलता है कि, तत्कालीन पदस्थ अधिकारी भी जांच के दायरे में आ रहे हैं। ओहदे के हिसाब से हाई प्रोफ़ाइल होते जा रहे मामले और मामले की संवेदनशीलता तथा अपराध को अपेक्षाकृत ज़्यादा विश्वसनीय तरीके से (तकनीकी) स्थापित करने में सीबीआई को सिद्ध हस्त माना जाता है। इसलिए प्रकरण सीबीआई को सौंपा गया है।