हिरासत और गिरफ्तारी में क्या अंतर है और क्या होती है न्यायिक कस्टडी…

ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब किसी मामले में किसी आरोपी को न्यायिक हिरासत दी जाती है और किसी को पुलिस हिरासत. कहीं गिरफ्तारी होती है और कहीं हिरासत. अगर आपको भी लगता है कि दोनों एक ही बात हैं तो ऐसा नहीं है.
क्या होती है कस्टडी
कस्टडी का मतलब है हिरासत यानि सुरक्षात्मक देखभाल के लिए किसी को पकड़ना. हिरासत और गिरफ्तारी तकनीक तौर पर अलग हैं. हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है, लेकिन हर हिरासत में गिरफ्तारी नहीं होती है. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है यदि वह अपराध करने का दोषी हो या उस पर संदेह हो. लेकिन हिरासत का मतलब उसे अस्थायी रूप से जेल में रखना होता है.
कस्टडी दो तरह की होती है
- पुलिस कस्टडी
- ज्यूडिशियल कस्टडी
कस्टडी में क्या होता है
कस्टडी में अब पुलिस या सरकारी एजेंसियां किसी व्यक्ति को अपने साथ ले जाती हैं. किसी जगह पर रखती हैं. उससे पूछताछ करती हैं. हालांकि कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति हिरासत में 05 दिनों से ज्यादा नहीं रखा जा सकता. ऐसे में सरकारी एजेंसियों को कोर्ट में उस व्यक्ति को पेश करना होता है और हिरासत की अवधि बढ़वानी होती है, जैसी अभी सीबीआई ने स्पेशल कोर्ट में जाकर मनीष सिसोदिया मामले में किया है. उसने अदालत में तर्क दिया कि सिसोदिया पूछताछ में सहयोगी नहीं कर रहे हैं लिहाजा हिरासत की अवधि को बढ़ा दिया जाए.
सीबीआई की अपील से स्पेशल कोर्ट सहमत लगी और उसने न्यायिक हिरासत को दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया. अब सिसोदिया से न्यायिक हिरासत की अवधि में पूछताछ की जाएगी. वैसे हिरासत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत आजादी के अधिकार पर सीधा हमला है.
पुलिस कस्टडी या पुलिस हिरासत में क्या होता है
पुलिस कस्टडी के दौरान आरोपी से अपराध के बारे में पूछताछ या जांच-पड़ताल की जाती है. पुलिस हिरासत के दौरान पुलिसआरोपी को घटनास्थल पर ले जाती है. जांच में मिलने वाले सबूतों को कब्जे में ले लेती है. गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का नियम है जो कि CRPC की धारा 167 के तहत है. मजिस्ट्रेट यह फैसला करते हैं कि आगे की जांच या पूछताछ की आवश्यकता है या नहीं. मजिस्ट्रेट आरोपी को 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में रखने का आदेश दे सकते हैं. गंभीरता और प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर इसे 30 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.वह पुलिस हिरासत से ज्यूडिशियल हिरासत में बदलने का आदेश भी दे सकते हैं.
ज्यूडिशियल कस्टडी (न्यायिक हिरासत)
जब किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत में रखा जाता है तो इसे ज्यूडिशियल कस्टडी कहा जाता है. मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही आरोपी को निश्चित अवधि के लिए जेल में रखा जाता है. आरोपी या संदिग्ध आरोपी मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी बन जाता है. उसे जनता की नजरों से दूर रखा जाता है ताकि उसे जनता या समाज के किसी वर्ग द्वारा किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न से बचाया जा सके. यदि कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत में है और जांच अभी भी चल रही है तो पुलिस को 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करना होता है.
क्या होता है पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर
– पुलिस कस्टडी में आरोपी को पुलिस थाने में रखा जाता है. न्यायिक हिरासत में आरोपी को जेल में रखा जाता है.
– पुलिस कस्टडी की अवधि 24घंटे की होती है जबकि न्यायिक हिरासत में ऐसी कोई अवधि नहीं होती है, वो कोर्ट तय करता है.
– पुलिस कस्टडी में रखे आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. न्यायिक हिरासत में आरोपी को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चल रहा हो या अदालत उसे जमानत ना दे.
– पुलिस कस्टडी में पुलिस आरोपी को मार-पीट सकती है ताकि वह अपना अपराध कबूल कर ले, लेकिन अगर आरोपी सीधे कोर्ट में हाजिर हो जाता है तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है और वह पुलिस की पिटाई से बच जाता है. यदि पुलिस को किसी तरह की पूछताछ करनी हो तो सबसे पहले न्यायाधीश से आज्ञा लेनी पड़ती है.
– पुलिस कस्टडी पुलिस द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के अंतर्गत आती है, जबकि न्यायिक कस्टडी में आरोपी न्यायाधीश की सुरक्षा के अंतर्गत आता है.
– पुलिस कस्टडी हत्या, लूट, चोरी इत्यादि के लिए की जाती है और न्यायिक हिरासत में पुलिस कस्टडी आमतौर पर भ्रष्टाचार, फ्राड, कर चोरी जैसे मामलों में पूछताछ के लिए की जाती है.
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