यदि आप शास्त्रों द्वारा निर्देशित एवं आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रमाणित अपनी भक्तिमय सेवाओं एवं कर्तव्यों को धैर्यपूर्वक करते हैं तो निश्चिन्त रहिये आपकी सफलता निश्चित है – देवी चित्रलेखाजी

खरसिया ।

जिस तरह गजेन्द्र नाम के हाथी को तालाब में स्नान कर रहा था तब ग्राह नामक हाथी ने उसका पाँव पकड़ लिया और सभी से मदद मांगने के बाद भी किसी ने मदद नहीं की तब गजेन्द्र ने भगवान् को खुद को समर्पित किया । और भगवान् ने गजेन्द्र की रक्षा की। इस प्रकार भगवान् को प्राप्त करने के लिए जीव योनि का कोई महत्त्व नहीं, उच्च योनि से लेकर निम्न योनि तक का कोई भी जीव भगवद् प्राप्ति कर सकता है। हमें धैर्य एवं उत्साहपूर्वक भक्ति करनी चाहिए । उत्साहात् निश्चयात् धैर्यात् तत्-तत् कर्म प्रवर्तनात्। हमें उत्साही होना चाहिए सुस्ती आपकी कोई सहायता नहीं करेगी । आपको बहुत उत्साही होना होगा । यदि आप उत्साही और धैर्यवान हैं और अब जब आपने भक्ति-मार्ग को अपना लिया है, तो सफलता निश्चित ही है । यही मार्ग है । उत्साहात् निश्चयात् धैर्यात् तत्-तत् कर्म प्रवर्तनात् । आपको कर्तव्य तो करने ही होंगे ।

कथा में आगे देवीजी ने समुद्र मंथन के बारे में बताया कि समुद्र मंथन में एक तरफ देवता और एक तरफ राक्षस रहे जहाँ भगवान् ने मोहिनी अवतार ग्रहण कर के देवताओं को अमृत पान कराया। और वामन अवतार का कथा सुनाई। भगवान् वामन ने राजा बलि से संकल्प करा कर तीन पग भूमि दान में मांगी और इस तीन पग में भगवान् वामन ने पृथ्वी आकाश और तीसरे पग में राजा बलि को मापा और बलि को सुतल लोक का राजा बना के खुद वहां के द्वारपाल बने। पश्चात देवीजी ने संक्षिप्त में प्रभु राम अवतार का श्रवण कराया। बताया की भगवान राम अपने आचरण के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहे जाते है क्योंकि भगवान राम सभी नैतिक गुणों से संपन्न है। प्रभु राम के द्वारा सभी दैत्यों का संहार किया गया। और माँ सीता जी के हरण के बाद हनुमान जी से प्रभु की भेंट हुई व लंका दहन के साथ के पश्चात रावण वध का श्रवण कराकर भगवान राम के जीवन का संक्षिप्त रूप मे श्रावण कराया और कथा के विश्राम में कृष्ण जन्म की कथा को स्पर्श करते हुए बताया क़ि द्वापर युग में कंस जैसे दुष्ट पापी का अत्याचार बढ़ जाने पर प्रजा के आग्रह भगवान ने नटखट अवतार लिया और श्री बसुदेव जी भगवान कृष्ण को गोकुल ले कर गए वहां से यशोदा मैया को जन्मी योगमाया को अपने पास ले आये और कृष्ण को उनके पास रख के वापस आ गए । फिर कथा में सभी ने कृष्णा जन्मोत्सव का आनद लिया और कथा का विश्राम हुआ।


भागवत कथा का आनंद लेने खरसिया के चारो ओर से(रायपुर, बिलासपुर, अकलतरा , नैला, चांपा, शक्ति, रायगढ़, घरघोडा, धरमजयगढ़, लैलूंगा, साथ साथ ओडिशा के अनेकों शहरों से) भी अनेकों श्रद्धालुओ का आगमन खरसिया की पावन धरा में हो रहा है। ।
