गणेश चतुर्थी पर इस बार बन रहा है 6 ग्रहों का शुभ संयोग-कान्हा शास्त्री

व्यापारी वर्ग और शेयर बाजार के लिए होगा लाभकारी
खरसिया। भाद्रपद चतुर्थी को गणपति स्थापना से आरंभ होकर चतुर्दशी को होने वाले विसर्जन तक गणपति विविध रूपों में पूरे देश में विराजमान रहते हैं। उन्हें मोदक तो प्रिय हैं ही, परंतु गणपति अकिंचन को भी मान देते हैं, अतः दूर्वा, नैवेद्य भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं। गणेशोत्सव जन-जन को एक सूत्र में पिरोता है। अपनी संस्कृति और धर्म का यह अप्रतिम सौंदर्य भी है, जो सबको साथ लेकर चलता है। श्रावण की पूर्णता, जब धरती पर हरियाली का सौंदर्य बिखेर रही होती है, तब मूर्तिकार के घर-आँगन में गणेश प्रतिमाएँ आकार लेने लगती हैं। प्रकृति के मंगल उदघोष के बाद मंगलमूर्ति की स्थापना का समय आना स्वाभाविक है।
पंडित कान्हा शास्त्री जी ने गणपति पूजन एवं पूजन का समय और पूजन विधि पर आगे प्रकाश डालते हुए बताया कि
श्री गणेश जी हमारी बुद्धि को परिष्कृत एवं परिमार्जित करते हैं और हमारे विघ्नों का समूल नाश करते हैं। गणेश जी का व्रत करने से जीवन में विघ्न दूर होते हैं एवं सदा मंगल होता है। अतः अपने जीवन के सभी प्रकार के विघ्नों के नाश एवंशुचिता व शुभता की प्राप्ति के लिए हमें श्री गणेश जी की उपासना करनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी पर इस बार 6 ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है , जो व्यापारियों के लिए लाभकारी होगा . चतुर्थी पर इस बार छह ग्रह अपनी श्रेष्ठ स्थिति में होंगे , जिसमें बुध कन्या राशि में , शुक्र तुला राशि में , राहु वृषभ राशि में , शनि मकर राशि में , केतु वृश्चिक राशि तथा शनि मकर राशि में विद्यमान होंगे . ग्रहों की ये स्थिति कारोबार करने वाले जातकों के लिए शुभ है . व्यापारी वर्ग के मुनाफे में बढ़ोत्तरी होगा और शेयर बाजार में भी लाभ होगा . गणेश चतुर्थी पर इस बार रवियोग में पूजन होगा . लंबे समय बाद इस बार चतुर्थी पर चित्रा – स्वाति नक्षत्र साथ रवि योग का संयोग बन रहा है . चित्रा नक्षत्र शाम 4.59 बजे तक रहेगा और इसके बाद स्वाति नक्षत्र लगेगा . वहीं 9 सितंबर दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर 12 बजकर 57 मिनट तक रवियोग रहेगा , जो कि उन्नति को दर्शा रहा है . इस शुभ योग में कोई भी नया काम और गणपति पूजा मंगलकारी होगी .
मध्याह्न गणेश पूजा – 11:04 से 13:32
चंद्र दर्शन से बचने का समय – 09:12 से 20:54 (10 सितंबर 2021)
चतुर्थी तिथि आरंभ- 00:17 (10 सितंबर 2021)
चतुर्थी तिथि समाप्त- 21:57 (10 सितंबर 2021)
श्री गणेश जी लोक मंगल के देवता हैं, लोक मंगल उनका उद्देश्य है परंतु जहाँ भी अमंगल होता है, उसे दूर करने के लिए श्री गणेश अग्रणी रहते हैं। गणेश जी रिद्वी और सिद्धी के स्वामी हैं। इसलिए उनकी कृपा से संपदा और समृद्धि का अभाव नहीं रहता है। श्री गणेश जी को दूर्वा और मोदक अत्यंत प्रिय है।
श्री गणेश उत्सव का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है। इसका पौराणिक एवं आध्यात्मिक महत्व है। इस उत्सव का प्रारंभ छत्रपति शिवाजी महाराज जी के द्वारा पुणे में हुआ था। शिवाजी महाराज ने गणेशोत्सव का प्रचलन बड़ी उमंग एवं उत्साह के साथ किया था, उन्होंने इस महोत्सव के माध्यम से लोगों में जनजाग्रति का संचार किया। इसके पश्चात पेशवाओं ने भी गणेशोत्सव के क्रम को आगे बढ़ाया। गणेश जी उनके कुल देवता थे इसलिए वे भी अत्यंत उत्साह के साथ गणेश पूजन करते थे। पेशवाओं के बाद यह उत्सव कमजोर पड़ गया और केवल मंदिरों और राजपरिवारों में ही सिमट गया।
स्वतंत्रता के पुरोधा लोकमान्य तिलक ने बनाया सार्वजनिक गणेशोत्सव को जन आंदोलन का माध्यम
इसके पश्चात 1892 में भाऊसाहब लक्ष्मण जबाले ने सार्वजनिक गणेशोत्सव प्रारंभ किया। स्वतंत्रता के पुरोधा लोकमान्य तिलक, सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा से अत्यंत प्रभावित हुए और 1893 में स्वतंत्रता का दीप प्रज्ज्वलित करने वाली पत्रिका ‘केसरी’ में इसे स्थान दिया। उन्होंने अपनी पत्रिका ‘केसरी ‘ के कार्यालय में इसकी स्थापना की और लोगों से आग्रह किया कि सभी इनकी पूजा-आराधना करें, ताकि जीवन, समाज और राष्ट्र में विघ्नों का नाश हो। उन्होंने श्री गणेश जी को जन-जन का भगवान कहकर संबोधन किया। लोगों ने बड़े उत्साह के साथ उसे स्वीकार किया, इसके बाद गणेश उत्सव जन-आंदोलन का माध्यम बना। उन्होंने इस उत्सव को जन-जन से जोड़कर स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जनचेतना जाग्रति का माध्यम बनाया और उसमें सफल भी हुए। आज भी संपूर्ण महाराष्ट्र इस उत्सव का केंद्र बिन्दु है, परंतु देश के प्रत्येक भाग में भी अब यह उत्सव जन-जन को जोड़ता है।