वकील ने अपने मुवक्किल को अँधेरे में रख कर दोषी ठहराया…दस हजार सह-निर्माता पटवारी एवं दस्तावेज लेखक को दोषमुक्त किया गया…

बिलासपुर। न्यायमूर्ति कृष्ण कुमार अग्रवाल ने किसानों को अत्यधिक तरलता के आधार पर 8.85 एकड़ जमीन पर अपना नाम दर्ज कराया, जो कि गैर कानूनी वकील और उनके सहयोगियों की अपील को खारिज करते हुए सत्र न्यायालय के आदेश को यथावत रखा गया है। इस मामले के दो मौलिक पटवारी एवं दस्तावेज लेखक की नामांकित सिडब को दोषमुक्त नहीं किया गया है। बुनियादी वकील को फरवरी 2016 में 3 साल की कैद हुई है।
सीपत थाना क्षेत्र के ग्राम खैरा निवासी मेहर चंद पटेल ने 2013 में सिविल लाइन थाने में लिखित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि उनके पास ग्राम खैरा में 8.85 एकड़ कृषि भूमि भी है। बिलासपुर कोर्ट में वकील करने वाले वकील राजस्व विभाग में उनके वकील थे। वकील एवं वकीलों ने कहा कि बाद में कुछ व्हीट द्रव्य की बिक्री कर पूरी 8.85 भूमि अपने नाम कर ली। भू स्वामी को इस बाद की जानकारी मार्च 2013 में सिविल लाइन थाने में लिखित शिकायत के रूप में दी गई। शिकायत की जांच में पुलिस को पता चला कि वकील ने अपने नाम से 2011 में मकान मालिक के फर्जी हस्ताक्षर किए हैं। जांच के बाद पुलिस ने वकील और गवाहों के खिलाफ मामला दर्ज किया, 22 बिंदु जारी करने वाले, सचिवालय अशोक और दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव की धोखाधड़ी का मामला कोर्ट में दर्ज किया गया। सत्रह कोर्ट बिलासपुर ने फरवरी 2016 में सभी को अलग-अलग धाराओं में 3 साल की कैद और अर्थदंड की सजा सुनाई। सजा के अलैहिस्सलाम ने उच्च न्यायालय में अलग-अलग अपील पेश की। न्यायमूर्ति प्रियेश कुमार अग्रवाल की अदालत में अपील पर सुनवाई हुई। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि साक्ष्यों की गहन जांच से यह स्पष्ट हो गया है कि यह अपीलकर्ता वकील जो मेहर चंद के वकील थे और एक प्रभावशाली स्थिति में थे। मनुष्य अक्सर उसके साथ घूमने जाता था। आवेदनकर्ता को विभिन्न प्रस्तावों के लिए आवेदन करना होता था। उसने घरेलू व्यवसायों में उसकी मदद की थी। आम वकील की पारिवारिक स्थिति के बारे में अच्छी तरह से जानकारी है कि उसके दो बेटे अलग-अलग रह रहे थे और उसकी स्थिति का लाभ अर्जित किया गया था, उसने उसे यह एसकेआर बिलासपुर ले लिया कि उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले में उसे जमानत दे दी गई और ज़मानत के बजाय, अपीलकर्ता वकील ने पंजीकरण बिक्री विलेख प्राप्त किया
उसकी पूरी 8.85 ओकलैंड ग्राउंड पर फर्ज़ी बुकिंग करके और अपनी फर्जी रिपोर्ट पर कब्ज़ा कर लिया गया।
अपीलकर्ता ने दावा किया कि बिक्री विलेख को वास्तविक रूप से जब्त कर लिया गया और उसके नाम में बदलाव राजस्व अभिलेखों की जांच की गई और अतिरिक्त विवरण से ऑर्डर प्राप्त किया गया। मृतकों की सूची, लेकिन अंतत: डाबा ने रिपोर्ट में मेन्स के हस्ताक्षरों की जांच की और पाया कि बिक्री विलेख में साइन मेन्स मेहर चंद के नहीं थे। इसलिए, अपीलकर्ता वकील की ओर से प्रस्ताव दिया गया कि उसने नकली बिक्री विलेख तैयार किया था। किसानों को धोखा दिया गया है। इसी प्रकार उनके सहयोगी सीताराम कैवर्त के भी अपराध में संलिता सिडब पाया गया। इस आधार पर अदालत ने अपीलकर्ता वकील एवं गवाहों द्वारा की गयी अपील को खारिज करते हुए अदालत का फैसला यथावत रखा है।
पटवारी व दस्तावेज़ लेखक दोषमुक्त
कोर्ट ने अशोक ध्रुव व दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव की अपील में कहा कि पटवारी ने सरकारी देनदारी पूरी करने के लिए 22 बिंदु जारी किए हैं, लेकिन यह सिदब नहीं है कि उन्होंने 22 बिंदु पितृ पक्ष में दिए हैं। इसी प्रकार के दस्तावेज लेखक ने भी गैर-कानूनी तरीके से वैलेखित विलेख तैयार किया और उसने स्वंय ने कहा कि इस तरह के दस्तावेज़ लेखक ने अपने सामने हस्ताक्षर नहीं किए थे। इस आधार पर कोर्ट ने दोनों को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया है।