छत्तीसगढ़ में सरकार ने जारी किया पत्र रेवेन्यू कोर्ट ज्यूडिशियल प्रोटेक्शन के दायरे में….

राज्य सरकार ने सभी कलेक्टर और संभागायुक्तों को पत्र जारी कर सूचित किया है कि, राजस्व न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों को न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 के तहत संरक्षण है। छत्तीसगढ़ सरकार के राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्रालय के सचिव अविनाश चंपावत ने यह पत्र जारी किया है।
क्या लिखा है पत्र में
पत्र में उल्लेखित है कि, जज प्रोटेक्शन एक्ट 1985 के अधिनियम की धारा 2(9) के तहत न्यायालय की परिधि में वे सभी व्यक्ति आएँगे जिन्हें विधि द्वारा किसी न्यायायिक कार्यवाही में निर्णायक आदेश या ऐसा आदेश जिसके विरुद्ध अपील नहीं की जाए तो वह निर्णायक हो जाएगा जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। इसी प्रकार धारा 3(1) के अंतर्गत कोई भी न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जो कि न्यायाधीश के रुप में कार्य कर रहा था, उनके द्वारा न्यायालयीन कार्यवाही के दौरान किए कृत्यों के लिए किसी भी प्रकार से सिविल या दांडिक वाद पर विचार नहीं करेगा। पत्र में लिखा गया है-“जज प्रोटेक्शन एक्ट 1985 की धारा 2 के प्रावधान के अनुसार राजस्व न्यायालय की कार्यवाहियों के लिए राजस्व पदाधिकारी निर्णायक आदेश पारित करने के लिए सक्षम हैं, क्योंकि पारित आदेश के विरुध्द संहिता की धारा 44(1) के अंतर्गत सक्षम न्यायालय में अपील का प्रावधान उपलब्ध है, इसलिए राजस्व अधिकारियों को न्यायालयीन कार्यवाही में किए गए कृत्यों के लिए जज प्रोटेक्शन एक्ट 1985 की धारा 2(9) तथा 3 के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।”
सरकार ने कहा – न्यायाधीश हैं
राज्य सरकार ने इस पत्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि, राजस्व न्यायालय के समस्त पीठासीन अधिकारी जो छत्तीसगढ़ भी राजस्व संहिता की धारा 31 अथवा किसी विधिक प्रावधानों के अंतर्गत अर्थ न्यायिक/न्यायिक कार्यवाही कर रहे हैं, न्यायाधीश संरक्षण अधिनियम 1985 की धारा 2 के अंतर्गत न्यायाधीश हैं, और उन्हें ऐसी अर्ध न्यायिक/न्यायिक कार्यवाही के दौरान किये गए किसी कार्य के विरुध्द सिविल अथवा दांडिक कार्यवाही से अधिनियम की धारा 3 के अधीन रहते हुए संरक्षण प्राप्त है।
पत्र के मायने सरल शब्दों में
पत्र के मायने यह हैं कि, यदि कोई रेवेन्यू कोर्ट कोई निर्णय देती है तो कोर्ट के पीठासीन अधिकारी के आदेश से खिलाफ अपील की जा सकती है, रिवीज़न किया जा सकता है लेकिन एफ़आइआर या परिवाद दायर नहीं किया जा सकता है। इस पत्र के ज़रिए सरकार ने याद दिलाया है कि, जैसे न्यायालय में न्यायाधीश के द्वारा प्रतिकूल निर्णय दिए जाने पर जज के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती, ठीक वैसे ही राजस्व कोर्ट के साथ भी व्यवस्था रखनी होगी। याने कोई आदेश आपके खिलाफ किसी रेवेन्यू कोर्ट से पारित हुआ तो आप नाराज़ होकर परिवाद या एफ़आइआर नहीं कर सकते। लंबे अरसे से यह लगातार प्रचलन में था कि, रेवेन्यू कोर्ट द्वारा आदेश के खिलाफ व्यक्ति अपील के साथ साथ आदेश जारी करने वाले अधिकारी के खिलाफ एफआइआर या परिवाद के ज़रिए मामला मुकदमा कर रहा था। इस पत्र से यह स्पष्ट किया गया है कि, ऐसा अब नहीं किया जा सकेगा।
रेवेन्यू कोर्ट का मतलब क्या है
रेवेन्यू कोर्ट का मतलब हुआ भू अभिलेख अधिकारी से लेकर रेवेन्यू बोर्ड तक की व्यवस्था। इसमें नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, अपर कलेक्टर, कलेक्टर, संभाग कमिश्नर और रेवेन्यू बोर्ड शामिल है।