लाखों का मिलना है मुआवजा मगर भगवान नहीं मिल रहे हैं…

रायगढ़। भगवान को लाखों रुपए का मुआवजा मिलना है। भगवान के नाम पर मुआवजे का चेक भी बनकर तैयार है, लेकिन भगवान हैं कि मिल ही नहीं रहे हैं। यह बात सुनने में अटपटी जरूर लगेगी, लेकिन सच है।
मामला रायगढ़ जिले का है जहां अलग-अलग परियोजनाओं के लिए मंदिरों का अधिग्रहण किया गया। अधिग्रहण के बाद मुआवजे की गणना की गई, लेकिन पेंच यह है कि मुआवजे का भुगतान किसे करें। जमीन और मंदिर के स्वामी स्वयं भगवान है और वे आकर चेक लेने से रहे। नतीजन ये मुआवजे की राशि सरकारी खाते में पड़ी है और शासन प्रशासन मुआवजा देने भगवान का
इंतजार कर रहे हैं। रायगढ़ जिले में पिछले कुछ सालों में अलग-अलग सरकारी और गैर सरकारी परियोजनाओं के लिए बड़े
पैमाने पर जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। इस दौरान कई किसानों के खेत, कईयों के घर दुकान जमीन भू-अधिग्रहण के दायरे में आए। इसमें कुछ मंदिर भी शामिल थे। राज्य सरकार की भू-अधिग्रहण नीति के तहत इन जमीनों पर मुआवजे की गणना की गई, संबंधित पक्ष को मुआवजा वितरित भी किया जाने लगा, लेकिन मामले में पेंच तब फंस गया-जब मंदिरों के जमीन अधिग्रहण के बदले मुआवजा राशि के वितरण की बारी आई।नियमानुसार मुआवजा पत्रक में मंदिर में काबिज भगवान के नाम पर प्रकरण तैयार किया गया था, लिहाजा मुआवजा राशि भी संबंधित भगवान को ही मिलेगी। ऐसे एक दो नहीं बल्कि 13 प्रकरण सामने आए जिसमें मुआवजा पाने के हकदार स्वयं भगवान थे। यह प्रकरण एनटीपीसी की रेल लाइन, केलो परियोजना और जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र के लिए किए गए जमीन अधिग्रहण से संबंधित थे।
अब जरा इन प्रकरणों पर गौर करें। ग्राम झलमला में श्री जगन्नाथ महाप्रभु के नाम पर 79000 का मुआवजा प्रकरण बना है। धनगांव में जगन्नाथ स्वामी जी के नाम पर 63488 रुपए का मुआवजा बना है। ग्राम कोटवार में छबीलेश्वर महादेव बाबा के नाम पर 156245 का मुआवजा बना है। ग्राम भिखारीमाल में महादेव बाबा शंकर के नाम पर 46 लाख 65898 रुपए का मुआवजा बना है। ग्राम टारपाली में श्री राम जानकी मंदिर के नाम पर दो अलग-अलग प्रकरणों में 85 लाख रुपए का मुआवजा बना है। इसी तरह भगवान जगन्नाथ महाप्रभु के ही नाम पर ग्राम केनसरा में 2111 रुपए, कोरमा पाली में 24965 धनगांव में 196528 रुपए, सूपा में 42589 रुपए, बरपाली में 63488 रुपए का मुआवजा प्रकरण बना है। ये सारे प्रकरण 2018 से 2020 में तैयार हुए जिनके भुगतान के लिए राशि भी सरकारी खाते में आकर पड़ी है। इनके चेक बनकर तैयार हैं, लेकिन वारिस कोई नहीं।
मामले में ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने निर्माण अनुसार मंदिर का ट्रस्ट भी बना लिया है। ऐसे में शासन को मुआवजे की राशि देनी चाहिए। अगर मौजूदा भी मिले तो ब्याज की राशि का भुगतान समिति को किया जाए जिससे मंदिर का मेंटेनेंस व अन्य खर्च चलाया जा सके। वे सालों से शासन प्रशासन के चक्कर काटकर थक चुके हैं, लेकिन मामले में अब तक कोई हल नहीं निकला है। इधर मामले में विभागीय अधिकारियों की अपनी ही दलील है। अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट के मुताबिक मंदिरों के मामले में पुजारी या फिर मंदिर का संचालन करने वाले व्यक्ति का नाम भूमि स्वामी के रूप में नहीं बल्कि सर्वराकारा कर के रूप में दर्ज किया जाता है। ऐसे में इन्हें सीधे मुआवजा नहीं दिया जा सकता। साल 2021 में स्टेट गवर्नमेंट वर्सेस उत्थान कल्याण समिति के एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट दिया है। अगर मंदिर ट्रस्ट के रूप में संचालित है तो ट्रस्ट एक्ट के तहत प्रकरणों के हिसाब से कार्रवाई की जाती है। इन सभी मामलों में अभी जांच बाकी है। मामले में नियमानुसार जांच कर कार्रवाई की जाएगी।