50 साल और शेख हसीना पर लौट आया काल! तब बेदखल हुईं तो दिल्ली बना था घर और अब…

बांग्लादेश में वक्त का पहिया घूमकर वहीं पहुंच गया जहां 50 वर्ष पहले था। 1975 में शेख हसीना के पिता शेख मुजीब उर रहमान का सैन्य तख्तापलट हो गया था। मुजीब के साथ-साथ उनके परिवार के 18 सदस्यों का कत्लेआम हो गया था। आज शेख हसीना की सत्ता चली गई और उन्हें बांग्लादेश से बेदखल होना पड़ा है।
दिल्ली। आधी सदी और समय का चक्र पूरा हो गया। शेख हसीना आज फिर बेघर हो गईं। बांग्लादेश में आरक्षण आंदोलन ने शेख हसीना सरकार की बलि ले ली। निवर्तमान प्रधानमंत्री को जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा है। प्रधानमंत्री आवास में अराजकता का माहौल है। लोग वहां से फर्नीचर एवं अन्य सामान कंधों पर उठाकर ले जा रहे हैं। सबसे दुखद तस्वीर शेख मुजीब उर रहमान की मूर्ति तोड़ते हुई आई। करीब 50 वर्ष पहले सैन्य तख्ता पलट में इसी मुजीब उर रहमान समेत उनके परिवार के 18 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। मुजीब की दो बेटियां शेख हसीना और शेख रिहाना ही बच पाईं, वो भी भारत की मदद से। आज समय का चक्र पूरा हुआ तो शेख हसीना फिर भारत की शरण में हैं। 1975 में उनके पिता और बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद भारत ने शेख हसीना को शरण दी थी।
तब हसीना ने खो दिया था पूरा परिवार
1975 के सैन्य तख्ता पलट में हसीना और रिहाना इसलिए बच पाईं क्योंकि दोनों 15 दिन पहले ही बांग्लादेश से निकलकर जर्मनी चली गई थीं। हसीना के पति न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे और जर्मनी में ही थे। 30 जुलाई, 1975 की वो तारीख थी जब हसीना अपने पिता से आखिरी बार मिल पाई थीं। दो हफ्ते बाद 15 अगस्त, 1975 को हसीना को पता चला कि सैन्य तख्ता पलट में उनके पिता की हत्या हो गई। लेकिन उन्हें तब तक पता नहीं था कि पिता ही नहीं, पूरा परिवार खत्म हो चुका है। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मुजीब परिवार की दोनों बेटियों की चिंता हुई। उन्होंने जर्मनी में अपने राजदूत हुमायूं राशिद चौधरी को हसीना के पास भेजा।
(तस्वीर में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ शेख हसीना)

इंदिरा गांधी ने शेख हसीना की ली थी जिम्मेदारी
हसीना की इंदिरा गांधी से बात हुई। उन्होंने भारत में शरण लेने का फैसला किया। फिर प्लानिंग हुई कि बिना किसी को भनक लगे हसीना और रिहाना को भारत कैसे लाया जाए? आखिरकार 24 अगस्त की दोपहर शेख हसीना ने अपने पति के साथ जर्मनी के फ्रैंकफर्ट से उड़ान भरीं। भारत ने उन्हें लाने एयर इंडिया का एक विमान भेजा था। 25 अगस्त, 1975 के तड़के विमान दिल्ली पहुंच गया। उन्हें 56 रिंग रोड स्थित एक सेफ हाउस में रखा गया। उनकी असली पहचान छिपाने के लिए मिस्टर और मिसेज मजूमदार की नई पहचान दी गई। खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनका खास ख्याल रखा।
(तस्वीर में शेख मुजीब उर रहमान और इंदिरा गांधी)

कड़ी सुरक्षा के बीच दिल्ली में रही थीं हसीना
कुछ दिनों के बाद शेख हसीना को पंडारा पार्क के सी ब्लॉक स्थित तीन कमरों के एक मकान में शिफ्ट कर दिया गया। चौतरफा सुरक्षा कर्मियों का पहरा था। डिटेक्टिव भी तैनात किए गए। हसीना के साइंटिस्ट पति को नई दिल्ली स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने सात वर्ष काम किया। इसके साथ ही सुरक्षा के तीन नियम बना दिए गए…
1. शेख हसीना को घर से बाहर नहीं निकलना है।
2. उन्हें किसी को अपनी असली पहचान नहीं बतानी है।
3. दिल्ली में किसी से भी संपर्क नहीं रखना है।
