कौन किसका राजनीतिक टूल ? राज्य बनाम केंद्र की जंग में किसकी शह और किसकी मात ?

कौन किसका राजनीतिक टूल ? राज्य बनाम केंद्र की जंग में किसकी शह और किसकी मात ? छापे की राजनीति या ............. पढ़िए पूरा विश्लेषण

मुख्यमंत्री द्वारा ED और इनकम टैक्स के अधिकारियों के ऊपर ट्वीट के माध्यम से बड़े आरोप लगाते गए हैं जिनमें ED अधिकारियों द्वारा राज्य के अधिकारियों के साथ हिरासत में मारपीट, मुर्गा बनाकर पीटने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री ने यहां तक लिखा है कि राज्य सरकार के अधिकारियों को तुरंत सम्मन काटकर बुला लिया जा रहा है। इस ट्वीट के बाद फिर से राज्य की सियासत ठंड में भी गरमा गई है।



अभी कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ में  ED के छापे कुछ अधिकारियों के घर और कार्यालयों पर पड़े थे, ED ने करोड़ों नगद और कुछ सोना बरामद करने का दावा भी किया था। इसके बाद से राजनीतिक माहौल गर्म हो गया था। भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे। कांग्रेस के संचार प्रमुख ने आरोप लगाया था कि ED की प्रेस विज्ञप्ति सबसे पहले भाजपा नेता और पुर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के पास कैसे पहुंच गई थी। वैसे ED के कार्रवाई पर विपक्ष लगातार हमलावर है। जिस विपक्षी सरकार के राज्य में चुनाव होता है वहां भाजपा के साथ -साथ ED भी सक्रिय हो जाती है। ऐसे लगता है जैसे दोनों  संस्थाओं को चुनाव की तैयारी  करनी हो।


यह भी सच है कि जिस विभाग की अपनी एक बड़ी गरिमा हुआ करती थी उसकी गरिमा तेजी से गिरी है। लगातार प्रवर्तन निदेशालय के कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। 2014 से पहले शायद ही किसी ने कभी इस निदेशालय के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया हो। उसपर तुर्रा यह कि जहां भी इनकी कार्रवाई होनी है वहां पहले से इस बात का हल्ला रहता है कि अब ED की कार्रवाई होगी क्योंकि चुनाव आने वाले हैं। यह भी तय होता है कि ED की कार्रवाई वहीं होगी जहां गैर भाजपा दल शासन में होगा।

छत्तीसगढ़ में ED छापे के मायने

2018 के विधान सभा चुनाव में पहली बार भाजपा को भारी शिकस्त झेलनी पड़ी। उसे 90 में से मात्र 18 सीट ही मिल पाई। बाद में चार सीटें उपचुनाव में कम भी हो गए। जो पार्टी 15 सालों तक यहां सत्ता में रही वह 15 प्रतिशत सीट पर ही सिमट कर रह गई। राजनीतिक पंडित लगातार यह भविष्यवाणी कर रहे हैं की छत्तीसगढ़ एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनेगी क्योंकि किसान, कर्मचारियों का एक वर्ग सहित ग्रामीणों का एक मुश्त वोट उन्हें मिलेगा। दरअसल छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने सत्ता संभालते ही वादे के अनुरूप धान खरीदी का दर 2500 ₹ प्रति क्विंटल कर दिया, किसानों के कर्ज माफ किए, कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम की घोषणा कर दी। ऐसे में कहा यह जा रहा है की भाजपा को ED का ही सहारा है और सत्ता वापसी के लिए ED की कार्रवाई एक कारगर हथियार साबित हो सकती है।

तीन चरण की रणनीति

कुछ भाजपा समर्थकों और राजनीतिक पंडितों की मानें तो ED का यह छापा इस रणनीति का पहला चरण है। छापेमारी का उद्देश्य सरकार को दवाब में लाना, उसे जनता में बदनाम करना, चुनावों के लिए मिलने वाली फंडिंग को रोकना है। कहा जाता है कि अगले चरण में उन सभी उद्योगपतियों को ED टारगेट कर सकती है जो कांग्रेस को अगले चुनाव में संभावित रूप से फंडिंग कर सकते हैं।  इसके अलावा यह भी संभावना है कि ED राज्य सरकार के कई अन्य विभागों में दबिश देकर कई नए खुलासे कर सकती है। नक्सल क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को लेकर भी नई तरह से जांच शुरू की जा सकती है।इसके बाद का काम पार्टी का है। पार्टी इन सभी मुद्दों को जनता तक ले जाकर सरकार को भ्रष्ट बताएगी और उसे चुनाव में भुनाएगी। इन मुद्दों को परिणाम में परिवर्तित करना इनका लक्ष्य होगा।



अधिकारियों से सहानुभूति नहीं

लोग इस बात पर तो सहमत हैं कि ED की छापेमारी राजनीतिक है और यह भूपेश बघेल सरकार को बदनाम करने के लिए है लेकिन अधिकारियों पर पड़ने वाले छापे से लोग खुश दिखते हैं। उन्हें उन अधिकारियों से कोई सहानुभूति नहीं है जिन्हें ED पकड़ रही है या जिनके घरों में छापेमारी की गई है। दरअसल बेलगाम नौकरशाही से लोग त्रस्त तो हैं। राजस्व और पुलिस विभाग पर सरकार का लगाम नहीं दिखता। यहां भ्रष्टाचार होने और आम लोगों को परेशान किए जाने की बात कई बार सामने आती है। नौकरशाही, खासकर राजस्व और पुलिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने पर लोग बिना तर्क के मान भी लेते हैं। यह देखा गया है कि इन विभागों के बिरले अधिकारियों को ही लोग सपोर्ट करते हैं। 


आखिर क्या है ED का इतिहास

प्रवर्तन निदेशालय या ईडी एक बहु-अनुशासनात्मक संगठन है जो आर्थिक अपराधों की जांच और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन के लिए बनाया गया है। इस निदेशालय की स्थापना 1 मई, 1956 को हुई, जब विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 (FERA “47) के तहत विनिमय नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन से निपटने के लिए आर्थिक मामलों के विभाग में एक “प्रवर्तन इकाई” का गठन किया गया था। मुख्यालय के रूप में दिल्ली के अलावा कोलकाता और मुंबई में स्थापित किया गया था।  इस इकाई का नेतृत्व एक कानूनी सेवा अधिकारी, प्रवर्तन निदेशक के रूप में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से प्रतिनियुक्ति पर लिए गए एक अधिकारी और विशेष पुलिस स्थापना के 03 निरीक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी।

वर्ष 1957 में, इस इकाई का नाम बदलकर “प्रवर्तन निदेशालय” कर दिया गया, और मद्रास में एक और शाखा खोली गई। 1960 में, निदेशालय का प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक मामलों के विभाग से राजस्व विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया था। समय बीतने के साथ, FERA”47 को निरस्त कर दिया गया और FERA, 1973 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। 04 वर्षों (1973 – 1977) की एक छोटी अवधि के लिए, निदेशालय कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में रहा। वर्तमान में, निदेशालय राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है।

आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत के साथ, FERA, 1973, जो एक नियामक कानून था, को निरस्त कर दिया गया और इसके स्थान पर, एक नया कानून विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) 1 जून 2000 को लाया गया।  इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय एंटी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को अधिनियमित कर धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) अधिनियमित किया गया था ।  जिसके प्रतिपादन का जिम्मा ED को 1अप्रैल 2015 से सौंपा गया था।

8 सालों में कितनी कार्रवाई

26 जुलाई 2022 को केंद्र सरकार के वित्त राज्यमंत्री ने राज्यसभा में लिखित जानकारी देते हुए बताया था कि 2014 से 2022 यानी 8 साल के दौरान ED ने 3010 कार्रवाई की है जबकि 2004 से 2014 के बीच ED ने मात्र 112 कार्रवाई ही की थी। वित्त राज्यमंत्री ने यह भी बताया था कि 3010 मामलों में से 888 मामलों में चार्ज शीट फाइल की गई और 23 मामलों में कनविक्शन यानि दोष पाया गया। इस दौरान 869.31 करोड़ की अपराधिक आय की संपत्ति जब्त की गई। वहीं 2005 से 2014 के बीच ED द्वारा 112 कार्रवाई की गई, जिसमे 5,346.16 करोड़ रुपये की अपराध की आय कुर्क की गई और 104 शिकायतें दर्ज की गईं।

कौन -कौन हुआ शिकार

2014 के बाद ED के कार्रवाई का शिकार सिर्फ विपक्षी नेता हुए हैं ऐसा आरोप सरकार पर लगाया जाता है। दरअसल केंद्र सरकार के आलोचक दल तृणमूल कांग्रेस (बंगाल), आम आदमी पार्टी (दिल्ली), कांग्रेस (कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश), शिवसेना (महाराष्ट्र), बसपा सहित कई दल इस संस्था के शिकार हुए हैं। विपक्षी नेता एक स्वर में, चाहे ममता बनर्जी हों या अरविंद केजरीवाल या संजय राउत ED कार्रवाई के बाद इन नेताओं ने सीधे केंद्र सरकार पर हमला बोला और सरकार के इस तरीके को धमकाने वाली राजनीति कहा है।

ED के कुछ चर्चित कार्रवाई

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ED ने कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा से लगातार पूछताछ की, लोकसभा चुनाव के दौरान ही मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के पीए के घर कार्रवाई हुई, कर्नाटक के कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के घर तब ED ने दबिश दी जब वे वहां की सरकार बचाने के लिए कांग्रेस विधायकों को अपने फार्म हाउस में रुकवाया था, ED ने वहीं दबिश दी थी। गुजरात चुनाव के ठीक पहले आम आदमी पार्टी के गुजरात के प्रभारी सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी, इसके बाद आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया को वहां का प्रभारी बनाया और उनके ऊपर भी ED की कार्रवाई हुई। इसमें बड़ी बात यह है कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने इस रेड की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पिछले 6 माह से प्रदेश में ED की कार्रवाई की संभावना जता रहे थे और यहां भी ED ने दोबारा दबिश देकर उनकी आशंका को सही सिद्ध कर दिया। इसी तरह बंगाल के विधानसभा चुनाव के दौरान वहां के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के घर भी ED ने कार्रवाई की जिसकी आलोचना हुई और सवाल खड़े किए गए।

Sunil Agrawal

Chief Editor - Pragya36garh.in, Mob. - 9425271222

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