आदिवासी महाकवि कालिदास पंडो का जन्मोत्सव आदिवासी परंपरा के अनुसार मनाया गया…
रायपुर। विगत दिनों रायपुर के बंजारी धाम मंदिर परिसर में आदिवासी महाकवि कालिदास पंडो का जन्म उत्सव आदिवासी परंपरा के अनुसार मनाया गया इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में इतिहासकार एवं पुरातत्वविद डॉ राम विजय शर्मा तथा रायपुर जिला गोंडा समाज के अध्यक्ष श्री मोहनलाल छेदी अध्यक्ष के रूप में मौजूद थे।
इस अवसर पर अध्यक्ष श्री मोहनलाल छेदी ने बताया कि हमारे पूर्वज लोग बताते थे कि महाकवि कालिदास हमारे आदिवासी समाज के हैं वह सरगुजा के मृगाडाँड़ में पंडो आदिवासी परिवार में जन्म लिए थे उनका विवाह उज्जैन के राजा की पुत्री विद्यापति से हुई थी राजा की लड़की अपने को बहुत विद्वान समझती थी तथा नौकर चाकर तथा मंत्री लोगों से ठीक से बात तक नहीं करती थी। आदिवासी महाकवि कालिदास से उनका विवाह करा दिया गया। शादी होने के बाद राजकुमारी मृगडांड आई। प्रथम रात्रि को राजकुमारी ने कालिदास से कुछ प्रश्न किए जिसका वे उत्तर नहीं दे पाए इसलिए वह क्रोधित होकर अपने पलंग से धक्का देकर कालिदास को गिरा दी कालिदास महाकाली कंकालिन के ठाणा के पास गिरे और उनका सिर से खून गिरने लगा अपने खून को कालिदास जी मां काली को लगा दिए जिससे मां काली प्रसन्न हो गई और वरदान मांगने को कहा।
आदिवासी समाज के प्रत्येक आदिवासी के घर में मां काली कंकाली का ठाणा रहता ही है। यही आदिवासी कालिदास आगे चलकर वाराणसी में 6 वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन किया और विद्वान बन गए उसके बाद अपनी जन्मस्थली आकर संस्कृत में ऋतु संहार, मेघदूतम और अभिज्ञान शाकुंतलम सहित कुल 3 ग्रंथों की रचना किए जिससे उनकी ख्याति देश में फैल गई और उज्जैन के राजा चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के दरबार में के नवरत्नों में उनका स्थान मिला। जन्मोत्सव के इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ विजय शर्मा ने बताया कि आदिवासी महाकवि कालिदास का जन्म 15 नवंबर 350 ई. को सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील के मृगडांड में हुआ था तथा हर वर्ष बड़े पैमाने पर आदिवासी समाज उनका जन्म उत्सव मनाता है इसमें छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखंड से आदिवासी समाज के लोग सम्मिलित होते हैं । इस अवसर पर बनमालीराम ध्रुव, पवन ध्रुव, धनवार ध्रुव, पुरानी ध्रुव तथा सैकड़ों आदिवासी उपस्थित रहकर जन्मोत्सव के कार्यक्रम को सफल बनाएं।