चापलूसी, चाटुकारिता एक आधुनिक कलयुगी हथियार है….

त्रिभुवन सिंह जी के फेस बुक वॉल से…
यह एक ऐसा हथियार है ,जो इस्तेमाल करने वाले अक्षम निष्क्रिय ग़ैरउत्त्पादक आदमी के प्रभाव को ज़मीन से आसमान तक उठा कर महिमा मण्डित कर देता है।
इस हथियार का इस्तेमाल किसी दूसरे के क्षमता दक्षता और ,प्रभाव-मण्डल का अनुचित लाभ लेने के लिये पाखण्ड पूर्ण होता है।
चापलूसी एक उपक्रम है,एक मिशन, एक तपस्या है,इसमें जादूगर की तरह मायाजाल ,नजरबन्द के हावभाव,भाठों की भाव-भंगिमा, अंग-प्रत्यंग से आकर्षण की कला, नाटक-नौटंकी का प्रयोग होता है ।
चापलूस एक अहिंसक चालबाज और भ्रमजाल फैलाने में माहिर मासूम परोपजीवी की तरह होता है। उसे मात्र बेअक्ल ,बेशर्म और निहित स्वार्थी होने की जरूरत के बाद. सिर्फ़ अपने आका और महामना की हर इक्छा ,असंगत जो कहे, उसकी हर बात पर निःशर्त सहमति/समर्थन जताना परमकर्तव्य हो जाना जरूरी है। दरअसल चापलूसी चाटुकारिता का यही मूलाधार है।
चापलूसी की कोइ सीमा नहीं होती है। हालाँकि इसकी शुरूआत से ही गुमराह और अति के बाद भ्रान्तियाँ बढ़ जाती हैं अंततःकूशल नेतृत्व भी अलोकप्रिय एवं अहंकारी हो जाता है ,एकाधिकार के लिए हठी और तानाशाही रवैया अपनाता है, संवादहीनता बढ़ते जाने से वास्तविकता से दूर हो जाता है।सक्षम, गुनी, ज्ञानी, उपेक्षा के कारण दूर हो जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी चापलूसी का प्रभाव/प्रचलन कम नहीं होता। बल्कि ऐसे में चापलूसी ही एकमात्र सहारा बचता है। जनसंपर्क का दायरा निष्प्रभावी हो जाने से असफलताओं का सामना करना पड़ता है । लोकप्रियता धीरे धीरे समाप्त जाती है।
चापलूसों की क्षमता/दक्षता की महिमा ही अलग है। यह स्वार्थ पूरा करने का ब्रह्मास्त्र है, हर समस्या की रामबाण औषधि है। इसके गिरफ़्त में जो आ जाता है वह महिमामंडित होकर भ्रमित हो जाता है, उचित-अनुचित का बोध नहीं कर पाता और अंततः विपरीत परिणाम भोगना ही पड़ता है ।
इसलिए कहा गया है कि प्रतिक्रिया और व्यवहार स्वाभाविक होनी चाहिए और ऐसा अगर ना हो तो चाटुकारिता होती है चापलूसी होती है ।
चापलूसी से व्यक्ति प्रोत्साहित तो होता है लेकिन इसके कुचक्र में फँस कर भ्रमित हो जाता है और अपने कर्तव्य/दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाता। वास्तविकता से परे चापलूसों ,चाटुकारों से घिरा नेतृत्व समाज व राष्ट्र के लिए अहितकर हो जाता है ।
जैसे अमरबेल किसी हरे-भरे वृक्ष को कमजोर कर देता है वैसे ही चापलूस,चाटुकार, सदा स्वपोषण के चक्कर में परजीवी हो सामाजिक,आर्थिक, एवं राजनैतिक परिवेश, और जन सरोकार को क्षतिग्रस्त करते रहते है।
ये मात्र चाटुकार और चापलुस ही नहीं ,कलिकाल के,कलुयग में कालनेमी हैं पद प्रतिष्ठा, मान, मर्यादा के मर्दन अवतार हैं।यही तो महामना आका भक्त हैं ।