आरोप सिद्ध हुआ..3 लाख वापिस भी किये…2 अधिकारी को सस्पेंड भी किये लेकिन..अवैध उगाही की धारा कब
सारंगढ। हमारे देश के संवैधानिक व्यवस्था कहती है कि नियम और कानून की पन्ना में सबके लिए कानून की सजा बराबर है चाहे गुनाह करने वाला बड़े से बड़े नेता हो कलेक्टर हो या आम नागरिक आखिर कानून की नियम सब पर समान लागू होता है। क्यो न कानून बनाने वाला ही क्यो न गुनाहगार हो। छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिले के सारंगढ क्षेत्र में जहाँ 3 बड़े-बड़े अधिकारी जिसमे तहसीलदार, बीएमओ,सब-इस्पेक्टर ने क्लिनिक संचालक को डरा धमकाकर आपदा को अवसर बनाते हुए 3 लाख रुपये ऐंठ लिए और इसकी उच्च स्तरीय जांच भी हुई जांच में सत्य भी पाया गया 3 लाख रुपये को संवेदनशील कलेक्टर साहब ने वापस भी करवा दिया जिसमें अंततः 2 अधिकारियों को सस्पेंड भी किया गया लेकिन इनके ऊपर अवैध उगाही की धारा 384ipc अब तक जुड़ नही सकी आखिर ऐसा क्यो?
क्या कानून की किताब में सिर्फ और सिर्फ ऐसे अधिकारियों को छोड़कर बाकी सभी के लिए देश के संवैधानिक व्यवस्था की पन्नो में लिखा कानून लागू होता है क्या ? क्या अधिकारी होने के कारण इनके ऊपर संवैधानिक विधि का उपयोग नही हो पा रहा? या सिर्फ विज्ञापन की राशि को लेने वाले पत्रकार के ऊपर झूठे शिकायत करने पर बिना जांच किये ये धारा जुड़ जाती है।
अभी हाल ही में धर्मजयगढ़ में दो व्यक्तियो के ऊपर पीडीएस विक्रेता को शिकायत की धमकी दे कर 5 हजार पैसों की मांग किया गया था जिसकी लिखित शिकायत धरमजयगढ़ थाना में हुई जिसमें तत्काल एक्शन लेते हुए शिकायत पर हां का चिन्ह लग कर अवैध उगाही की धारा 384ipc लग कर जेल भेजा गया। लेकिन यहां क्लिनिक संचालक के ऊपर कारवाही की डर दिखाकर 3 लाख रुपये लूटने वाले 2 अधिकारियों को तो सस्पेंड किया गया और एक बीएमओ के ऊपर अभी प्रशासन की गाज गिरनी बाकी है, लेकिन जब जांच में सत्य पाया गया वसूली किये हुए राशि को भी कलेक्टर साहब ने वापस करवा दिया तो इनके ऊपर अवैध उगाही की धारा 384ipc जुड़ क्यो नही पा रही है? क्या इनको सरकार की तरफ से इन धाराओं से सरकारी पद पर होने की कारण छूट दिया गया है? क्या कानून की नियम इनके लिए लागू नही होती? इतने बड़े बहुचर्चित कांड सारंगढ के हिर्री ग्राम में उपस्थित वारे क्लिनिक पर तहसीलदार सुनील अग्रवाल, बीएमओ आर. एल. सिदार और सब- इस्पेक्टर कमल किशोर पटेल के द्वारा और इनके सरकारी अमला टीम ने लॉक डाउन के बीच मे 7 मई को दबिश देकर डरा धमकाकर 3 लाख रुपये लूट लिए थे जिसकी शिकायत वारे क्लिनिक संचालक डॉक्टर खगेश्वर प्रसाद वारे ने लिखित शिकायत कर जांच की मांग की थी जिसपर सब-इस्पेक्टर को पुलिस अधीक्षक महोदय ने पहले तो लाइन अटैच किया फिर जांच हो जाने के बाद सस्पेंड कर दिया वही कलेक्टर महोदय ने बिलासपुर संभागीय कमिश्नर को तहसीलदार के ऊपर कारवाही के लिए खत लिखा था जिसमे तहसीलदार को भी ससपेंड कर दिया गया वही अब बीएमओ के ऊपर प्रशासन की गाज गिरना बाकी रह गया जिसको कलेक्टर महोदय ने कहा कि जल्द कारवाही होगी जांच के लिए भेजा जा चुका है। यहां तक तो ठीक है कारवाही तो हो जा रहा है लेकिन अवैध वसूली ,डरा धमकाकर 3 लाख रुपये लूटने की धारा कब जुड़ेगी ये हम नही कह रहे है भाई जब रुपये लूट लिए उगाही करके जांच भी हुई जांच में भी सत्य पाया गया यहाँ तक की 3 लाख वारे क्लिनिक को वापस भी किया गया लेकिन जब सब सत्य की पुष्टि हो गया तो। आखिर धारा 384ipc जुड़ क्यो नही रही है? क्या इनको अपराध करने की छूट मिल गया? या इनको अभयदान दिया जा रहा है। जब बाकियों के ऊपर ऐसे स्थिति में कानून कारवाही करने से नही चूकते लेकिन यहां कैसे चूकते नजर आ रहे है। या कानून के रखवाले के लिए यह नियम लागू नही होता क्या ? आम नागरिक और विज्ञापन की राशि लेने पहुचे पत्रकारों पर बिना जांच के फर्जी शिकायत पे तत्काल कारवाही कर देते है तो इनको अभयदान क्यो मिल रहा है? ज़रा संज्ञान में लीजिए साहब ऐसे में कानून के सत्यता से भरोषा उठ जाएगा। और ऐसे भ्रष्टाचार और सरकारी पद में रहकर अवैध उगाही जैसे अपराध करने वालो के ऊपर विधिवत कारवाही नही होगा तो ऐसे लोगो का मनोबल बढ़ता ही जायेगा।

