4G से कितना अलग है 5G, जो बदल देगा लोगों का मोबाइल एक्सपीरियंस!

वह समय तो आपको याद ही होगा. जब टेलिकॉम कंपनी रिलायंस जिओ ने 4G को लांच कर तहलका मचा दिया था. ऐसा नहीं है कि उसके पहले भारत में इंटरनेट मौजूद नहीं था. 1981 में 1जी, 1992 में 2जी, और 2001 में 3G वाला मोबाइल नेटवर्क आ चुका था. किन्तु, क्रांति शब्द, खासकर ‘रिलायंस’ जियो के 4G के साथ ज्यादा मुफ़ीद बैठता है. आगे का सफर और भी ज्यादा रोमांचक हो सकता है।
वो इसलिए क्योंकि, भारत में 5G नेटवर्क दस्तक दे चुका है. एयरटेल ने घोषणा की है कि उसने हैदराबाद में एक कमर्शियल नेटवर्क पर लाइव 5 जी सर्विस देने वाली पहली टेलिकॉम कंपनी बन गई है. वहीं जियो ने कहा था कि वह 2021 की दूसरी छमाही में देश में 5G सर्विस उपलब्ध करवाएगी. ऐसे में जानना दिलचस्प रहेगा कि 5G, 4G से कैसे अलग है, और यह कैसे बदलेगा हमारा मोबाइल एक्सपीरियंस?
असल में 5G है क्या?
5G को सेल्युलर मोबाइल सर्विस की 5वां पीढ़ी कहा जा सकता है. जो अपनी सुपर फास्ट डाटा सर्विस के चलते चर्चा का विषय बना रहता है. इसे मिलीमीटर वेब्स, स्मॉल सेल, मैसिव माइमो, बीमफॉर्मिंग और फुल डुप्लेक्स के संगम से विकसित किया गया है. इनकी मदद से उम्मीद जताई जा रही है कि इस नेटवर्क में इंटरनेट की स्पीड 1 000mbps तक पहुंचा जाएगी. मतलब 4G के मुकाबले 10-20 गुना तेज डाटा डाउनलोड स्पीड।
भारत भी इसका लाभ ले सके. इसके लिए ट्राई ने 2017 में इससे जुड़ा एक खाका तैयार किया था. इसी क्रम में एयरटेल ने दावा किया है कि उसके पास मौजूदा स्पेक्ट्रम पर मिड-बैंड में 5G नेटवर्क को चलाने की कैपेसिटी है. 5G नेटवर्क को सफल बनाने के लिए एयरटेल ने अपने पार्टनर Ericsson के साथ मिलकर काम किया है. कंपनी के मुताबिक 5G सर्विस को लाने वाली एयरटेल देश की पहली कंपनी बन गई है।
डिजिटल युग के लिए यह नेटवर्क कितना महत्वपूर्ण हो सकता. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया की बड़ी मोबाइल डिवाइस कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स को बनाने की तैयारी में जुटी गई हैं।
इसकी जरूरत क्यों?

आपके मन में सवाल हो सकता है कि आखिर 5G की जरूरत क्यों. दरअसल जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है. वैसे-वैसे स्मार्टफोन और इंटरनेट से चलने वाले अन्य डिवाइसेज की संख्या भी बढ़ रही है. परिणाम स्वरूप वर्तमान में प्रयोग वाली 6 गीगाहर्ट्ज वाली फ्रीक्वेंसी धीमी पड़ रही है. कई बार तो यह जाम तक हो जाती है. वहीं, वेवलेंथ छोटी होने के कारण मिलीमीटर वेब्स उतना अच्छे से ट्रेवल नहीं कर पाते, जितना करना चाहिए।
मौसम भी इसमें बाधक बनता है. बारिश वाले माहौल में तो यह खासा प्रभावित होता है. यही कारण है कि मिलीमीटर वेब्स, स्मॉल सेल, मैसिव माइमो, बीमफॉर्मिंग और फुल डुप्लेक्स के संगम से 5G को तैयार किया गया. इसमें मिलीमीटर वेब्स के जरिए 30 से 300 गीगाहर्ट्ज का खाली फ्रीक्वेंसी बैंड काम में लाया जाया जाएगा, जिससे रफ्तार मिलना लाजमी है. इसी तरह दूसरे उपकरण भी अपना-अपना काम करेंगे।