क्या सोनमणि बोरा राजभवन और सरकार के बीच दीवार बन गए थे?

रायपुर। क्या सोनमणि बोरा राजभवन और सरकार के बीच दीवार बन गए थे, इस आशय की चर्चा प्रशासनिक हल्कों में चल रही है। जानकार बताते हैं कि विदेश से लौटने के बाद हाव भाव और तेवर कुछ इस तरह के थे कि सरकार के लोगों को रास नहीं आया और महीने भर तक बिना विभाग के रहे। चर्चा है कि आईएएस के 98 बैच के अफसर हमेशा अपनी पोस्टिंग को बाकी अफसरों की तुलना में ज्यादा महत्त्वाकांक्षी रहे। यही वजह है कि वे सत्ताधीशों के ज्यादा निकट रहने की कोशिश करते थे। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री उनके लिए अंकल रहे, तो डॉ रमन सिंह के गृह जिले कवर्धा कलेक्टर रहते घर परिवार के लोगों से भी काफी निकटता रही।इन सब वजहों से भी उन्हें मनचाही पोस्टिंग मिलती रही। वे रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े जिलों के भी कलेक्टर रहे। आमतौर पर उनका कामकाज सामान्य ही रहा। लेकिन सचिव बनने के बाद जलसंसाधन विभाग जैसी अहम जिम्मेदारियां मिलती गई। अमेरिका अध्ययन अवकाश से लौटे तो सरकार बदल गई थी।नए लोगों के साथ तालमेल बिठाने में समय तो लगता ही है। बोरा ने पंचायत, जलसंसाधन और पीडब्ल्यूडी जैसे विभागों में काम करने की इच्छा जताई। वे सीएम से मिले और जलसंसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे से मिले। सिर्फ जलसंसाधन विभाग में जूनियर अफसर अविनाश चंपावत थे इसलिए वहां संभावना ज्यादा थी लेकिन चौबे चंपावत को बदलने के पक्ष में नहीं थे ।अतएव महीने भर उन्हें खाली रहना पड़ा। बाद में उन्हें उच्च शिक्षा विभाग के साथ ही साथ पर्यटन विभाग का अतिरिक्त प्रभार मिला तो वे संतुष्ट नहीं थे। चर्चा तो यह कि उन्होंने खुद होकर राज्यपाल के सचिव बनने की इच्छा जताई थी लेकिन सरकार ने उनकी इच्छा नुसार राजभवन में पोस्टिंग तो कर दी, लेकिन बाकी विभाग उनसे ले लिया। कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में उन्हें श्रम विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, लेकिन काम से ज्यादा प्रचार भी मिलता रहा। सरकार ने उस दौरान कुछ और आई ए एस अफसरों को वहां लगाया तब कहीं जाकर व्यवस्था संभाली। राज्यपाल के सचिव के रूप में सरकार के लोग पहले के सचिव एसके जायसवाल को ज्यादा बेहतर मानते हैं। बोरा के रहते सरकार को असुविधा का सामना करना पड़ा।जब उन्होंने केन्द्र सरकार में जाने की इच्छा जताई, तो सरकार ने बिना एक पल देरी किए उन्हें अनुमति दे दी।संभव है कि पिछली सरकार के नजदीकियों के चलते अच्छी पोस्टिंग मिल जाए, लेकिन यहां उनको लेकर अच्छी धारणा नहीं बन पाई है।कम से कम उनके संसदीय कार्य मंत्रालय जैसे हल्के विभाग को देखकर ऐसा ही लगता है।