अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में ड़ाॅ. राम विजय शर्मा के शोध पत्र की सराहना

चांपा। विगत दिनों ठाकुर छेदीलाल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय जांजगीर में ‘‘शिक्षा का अधिकार क्रियान्वयन की चुनौतियां एवं भावी सुधार के उपाय’’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ राम विजय शर्मा तहसीलदार चांपा के शोधपत्र की सराहना की गई उनके शोधपत्र का शीर्षक “भारत में शिक्षा के योगदान में शिक्षा के विकास में राधाकृष्णन आयोग का योगदान” था, उन्होंने अपने शोध पत्र में बताया कि प्राचीन काल में भारत की शिक्षा की स्थिति अत्यंत उन्नत थी और इसीलिए भारत को जगत गुरु के रूप में जाना जाता था उस समय स्त्री एवं पुरुष दोनों शिक्षा प्राप्त करने के अधिकारी थे। संपूर्ण देश में पारंपरिक शिक्षा के अनेक केंद्र थे, यह स्थिति मध्यकाल तक कायम रही परंतु ब्रिटिश शासन की स्थापना के पश्चात शिक्षा में गिरावट आई ब्रिटिश शासकों ने शिक्षा नीति के निर्धारण के समय हमेशा इस तथ्य को ध्यान में रखा कि भारत के लोगों को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखना है और इस कारण भारत की समृद्धि साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परंपरा को नष्ट किया, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा के विकास के क्षेत्र में तेजी से पहल की गई, भारत सरकार ने 4 नवंबर 1948 को विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की स्थापना की। आयोग ने भारत सरकार के समक्ष 25 अगस्त 1949 को रिपोर्ट प्रस्तुत किया जिसके आधार पर 1953 ईस्वी में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन किया गया। यह रिपोर्ट शिक्षा के विकास में मील का पत्थर माना जाता है इस संगोष्ठी में लंदन के ब्रुनेल विश्वविद्यालय के सामाजिक एवं राजनीतिक विज्ञान के रीडर डॉक्टर पेगी फ्रोरर, अटल बिहारी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति गौरी दत्त शर्मा, टीसीएल महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर अंबिका प्रसाद वर्मा, शासकीय बिलासा कन्या महाविद्यालय बिलासपुर के प्राचार्य डॉ एस एल निराला, नवागढ़ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ व्हीके पटेल, प्रोफेसर आरके चंद्रा, प्रोफेसर शालिनी पाण्डेय प्रोफेसर आरजी खूटे विशेष रूप से उपस्थित थे, वहीं वेलेडिक्ट्री सेशन में डॉ रामविजय शर्मा तहसीलदार चांपा, प्रोफेसर ईश्वरी बृजवासी, डॉक्टर करिकांते नांदेड़ महाराष्ट्र, डॉक्टर दत्ता नांदेड़ महाराष्ट्र मंचासीन थे।