चार्जशीट दायर करने के बाद भी रद्द हो सकती है FIR : सुप्रीम कोर्ट

चार्जशीट दायर करने के बाद भी रद्द हो सकती है FIR : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि चार्जशीट दायर होने के बाद भी आरोपी एफआईआर रद्द करवाने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च अदालत में याचिका दे सकता है। अब तक कानून यही है कि किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट दायर हो जाने पर उसमें धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की याचिका स्वीकार्य नहीं होती, लेकिन कोर्ट के इस फैसले से आपराधिक न्यायशास्त्र की स्थिति में अभियुक्तों के पक्ष में बड़ा बदलाव आ गया है। जस्टिस एसए बोब्डे और एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि यह मानना अन्याय होगा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही में एफआईआर की स्टेज पर ही हस्तक्षेप किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट एफआईआर रद्द करने की याचिका को सुन सकता था। यहां तक कि इस याचिका के लंबित रहते यदि चार्जशीट दायर भी हो गई है तो भी इसे सुना जा सकता है। चार्जशीट के बाद दुरुपयोग और बढ़ जाएगा  कोर्ट ने फैसले में कहा कि धारा 482 में यह कहीं नहीं है, जिसमें कोर्ट को कानून का दुरुपयोग या अन्याय होने से रोकने के लिए सिर्फ एफआईआर की स्टेज पर ही प्रतिबंधित किया हो। यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि हाईकोर्ट धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकता है। यहां तक कि हाईकोर्ट इस कार्यवाही को ट्रायल कोर्ट में डिस्चार्ज अर्जी लंबित होने पर भी जारी रख सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह मानना अन्याय होगा कि अभियुक्त के खिलाफ चार्जशीट दायर हो चुकी है और अब उसकी रिपोर्ट रद्द करने की याचिका नहीं सुनी जा सकती। इसके उलट एफआईआर के कारण प्रक्रिया का दुरुपयोग उस समय और ज्यादा बढ़ जाएगा, जब यह जांच के बाद चार्जशीट में तब्दील हो जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है कि अन्याय तथा प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने की शक्ति हर कोर्ट को दी गई है।  कोई अपराध साबित नहीं होतायह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहता के खिलाफ प्रकरण में कहा कि यह मामला दीवानी प्रकृति का है इसमें कहीं कोई अपराध साबित नहीं होता। हम मानते हैं कि एक करोड़ रुपये की सुरक्षा राशि को अभियुक्त द्वारा हड़प लेना विशुद्ध रूप से दीवानी मामला है। हम यह भी देख रहे हैं कि इस मामले में शिकायतकर्ता ने इस राशि को वापस लेने के लिए एफआईआर दर्ज करने के अलावा कोई और प्रयास नहीं किए। इससे साफ है कि यह अभियोजन दुर्भावनापूर्ण, न टिकने योग्य और अभियुक्त को परेशान करने की नीयत से किया गया है।  क्या है मामला  मोहता ने एक संपत्ति विकसित करने के लिए बिल्डर से अनुबंध किया था, लेकिन बाईलाज में पता लगा कि संपत्ति को गगनचुंबी इमारत नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि यह लुटियन जोन में है। इसके बाद उसने बिल्डर को लिखा कि वह संपत्ति विकसित नहीं करवाना चाहता, लेकिन उसने बिल्डर से लिए एक करोड़ रुपये की सुरक्षा राशि नहीं लौटाई। बिल्डर ने एफआईआर दर्ज करवा दी। इसे रद्द करवाने के लिए मोहता दिल्ली हाईकोर्ट गए, लेकिन कोर्ट ने कहा कि मामले में प्रारंभिक जांच चल रही है और याचिका रद्द कर दी। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आए, लेकिन तब तक पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी। कोर्ट में कहा गया कि चार्जशीट दायर होने के बाद एफआईआर रद्द करने की याचिका नहीं सुनी जा सकती। 

Sunil Agrawal

Chief Editor - Pragya36garh.in, Mob. - 9425271222

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