डॉ. राम विजय शर्मा के शोध एवं खोज पर आधारित अमर शहीद कांतिवीर चिंतु देहारी (हल्बा) की प्रतिमा का अनावरण…

कोलर।
इस अवसर पर शोधकर्ता एवं इतिहास कार डॉ. राम विजय शर्मा ने कहा की 1910 ई. का भूमकाल स्वतंत्रता आंदोलन का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान है उन्होने आगे बताया की भारत की शायद ही कोई आंदोलन इतना व्यापक एवं सुनियोजित तरीके से संचालित किया गया। इसके नेतृत्वकर्ता बस्तर रियासत के भूतपूँव दीवान लाल कालेंद्र सिंह थे। इस आदोलन का संचालन ताडोकी के रानी डोंगरी पहाड़ी से पूरे बस्तर में किया गया। कांति के सभी बड़े-बडे नेता रानी ढोंगरी पहाडी पर जमा होते थे तथा रणनीति बनाते थे। रानी डोंगरी पहाडी पर जाने के लिए सुरंग से रास्ता था, जिससे अंग्रेजो को पता नहीं चलता था। पहाडी पर ही दंतेश्वरी माई का मंदिर था। रानी डोंगरी पहाडी पर चिंतु हल्बा, दीना मरार, ताड़ोकी के बघेल जी. मासबरस के राजू मुरिया तथा कोदा गाँव के लुला मुरिया आदि आम की टहनी में लालमिर्च बांधते थे तथा भोर होते संपूर्ण बस्तर में भेज दिया जाता था, जिससे कांतिकारी आंदोलन के जमा होते थे, यह एक प्रकार का निमंत्रण पत्र था। डॉ. शर्मा ने 1910 ई.का बस्तर का भूमकाल स्वतंत्रता आंदोलन को भारत का सबसे सुनियोजित एवं व्यापक आंदोलन घोषित किया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि एवं अंतागढ़ के पूर्व विधायक श्री मंतुराम पवार जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शोधकर्ता एवं इतिहासकार डॉ. राम विजय शर्मा का हम सभी आदिवासी समाज ऋणि है जिन्होंने कोलर के अमर शहीद चिंतु हल्बा के बारे में खोज किया एवं आदिवासी समाज को जागृत किया। कोलर का एक किसान का लड़का चिंतु हग्ला जी का छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रतिमा का स्थापना किया जाना कोलर के किसानों का सम्मान है। उन्होने कोलर के हायर सेंकेंड्री स्कूल का नामांतरण अमर शहीद चिंतु देहारी हल्बा के नाम पर किये जाने की अपील की।
इस अवसर पर आदिवासी युवा नेता तथा जनपद पंचायत अंतागढ़ के अध्यक्ष श्री बद्री गावडे जी ने बताया कि हम लोग डॉ. राम विजय शर्मा के साथ एवं डॉ. लिलेश साहू के साथ जंगल जंगल जाकर अंतागढ़ अंचल के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में खोज किया। उन्होने जल जंगल जमीन पर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने की बाल बताई तथा शासन से उनके हितों की रक्षा के लिए कदम उठाये जाने की मांग की उन्होंने आगे कहा कि अमर शहीद चिंतु हल्बा जी के बलिदान को कोलर परगना की जनता कभी बुल नहीं पायेगी।
इस अवसर पर चिंतु हल्बा देहारी जी के नाती दलपत सिंह देहारी ने बताया की अंग्रेजो के शोषण के खिलाफ मेरे दादा जी अमर शहीद चिंतु हल्बा जी थे तथा कोलर परगना के कांति के नायक थे। वे ताडपत्र ग्रंथों की रचना दिन भर उपवास रहकर बरगद के पेठ क नीचे बैठकर लिखते थे। उनकी प्रतिमा के निर्माण के लिए उन्होने छत्तीसगढ़ शासन का आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर सभा की अध्यक्षता कर रही कोलर सरपंच श्रीमती तारावती बघेल ने बताया कि अमर शहीद चिंतु हल्बा जी की प्रतिमा के स्थापना से कोलर परगना के किसानों का सम्मान बढ़ा है तथा चिंतु हल्बा जी के कृति को बढ़ाने के लिए पूरा ग्राम पंचायत कृत संकल्प है।
इस अवसर पर नारायणपुर के लोक साहित्यकार श्री मागेश्वर पात्र ने बताया की चिंतु हल्बा जी का जन्म 03 अक्टूबर 1880 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रघुनाथ हल्बा था, वे जल जंगल जमीन के मुद्दों को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ कोलर परगना के आदिवासियों को संगठित किया था।
इस अवसर पर कोलर परगना के परगना मांझी मेहतु राम दर्रो, 18 गढ़ हल्बा महासभा बड़े डोंगर के अध्यक्ष श्री लतेल राम नाईक, श्री शिव कुमार पात्र संरक्षक 18 गढ़ हल्बा महासभा बड़े डोंगर, श्री इंद्र प्रसाद बघेल कोषाध्यक्ष 18 गढ़ हल्बा महासभा बड़े डोंगर, श्री पीलानाथ बेलसरिया, श्री उमेश राम बघेल परगना हिकमी कोलर, श्री दलपत सिंह देहारी, चिंतु देहारी का नाती, श्री ब्रम्हानंद नेगी गढ़ अध्यक्ष कोलर, श्री सुमेश राम बघेल, श्री डिगेश देहारी तथा कोलर परगना 84 गाँव के आदिवासी समाज तथा अन्य समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहकर प्रतिमा अनावरण महोत्सव को सफल बनायें।